लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 23

प्रेमचन्द की कहानियाँ 23

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :137
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9784
आईएसबीएन :9781613015216

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

296 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग


''बड़ी खुशी से। तुम उसे पहचानते हो न?''

''हाँ, अच्छी तरह।''

''तो अच्छा होगा, यह काम मुझको ही करने दो, तुम्हें शायद उस पर दया आ जाए।''

''बहुत अच्छा। पर यह याद रखो वह आदमी बड़ा भाग्यशाली है। कई बार मौत के मुँह से बचकर निकला है। क्या आश्चर्य है कि तुमको भी उस पर दया आ जाए। इसलिए तुम प्रतिज्ञा करो कि उसे जरूर जहन्तुम पहुँचाओगे।''

पृथ्वीसिंह- ''मैं दुर्गा की शपथ खाकर कहता हूँ कि उस आदमी को अवश्य मारूँगा।''

''बस, हम दोनों मिलकर कार्य सिद्ध कर लेंगे। तुम अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहोगे न?''

''क्यों? क्या मैं सिपाही नहीं हूँ? एक बार जो प्रतिज्ञा की समझ लो कि वह पूरी करूँगा, चाहे इसमें अपनी जान ही क्यों न चली जाए।''

''सब अवस्थाओं में?''

''हाँ, सब अवस्थाओं में।''

''यदि वह तुम्हारा कोई बंधु हो तो?''

पृथ्वीसिंह ने धर्मसिंह को विचारपूर्वक देखकर कहा- ''कोई बंधु हो तो?''

धर्मसिंह- ''हाँ संभव है कि वह तुम्हारा कोई नातेदार हो।''

पृथ्वीसिंह- (जोश में) ''कोई हो, यदि वह मेरा भाई भी हो, जीता चुनवा दूँ।''

धर्मसिंह घोड़े से उतर पड़े। उनका चेहरा उतरा हुआ था और ओंठ काँप रहे थे। उन्होंने कमर से तेगा खोलकर जमीन पर रख दिया और पृथ्वीसिंह को ललकार कर कहा- ''पृथ्वीसिंह तैयार हो जाओ। वह दुष्ट मिल गया।''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book