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प्रेमचन्द की कहानियाँ 23

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :137
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9784
आईएसबीएन :9781613015216

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग


अगहन का महीना था, बरगद की डालियों में मूँगे के दाने लगे हुए थे। जोधपुर के क्रिलों से सलामियों की घनगर्ज अवाज़ें आने लगीं। सारे नगर में घूम मच गई कि कुँवर पृथ्वीसिंह सकुशल अफ़गानिस्तान से लौट आए। दोनों राजकुमारियाँ थाली में आरती के समान लिए दरवाजे पर खड़ी थीं। पृथ्वीसिंह दरबारियों के मुजरे लेते हुए महल में आए। दुर्गाकुँवर ने आरती उतारी और दोनों एक-दूसरे को देखकर खुश हो गए। धर्मसिंह भी प्रसन्नता से ऐंठते हुए अपने महल में पहुंचे, पर भीतर पैर रखने भी न पाए थे कि छींक हुई और दाहिनी आँख फड़कने लगी। राजनंदिनी आरती का थाल लेकर लपकी, पर उसका पैर फिसल गया और थाल हाथ से छूटकर गिर पड़ा। धर्मसिंह का माथा ठनका, और राजनंदिनी का चेहरा पीला हो गया। असगुन क्यों? व्रजविलासिनी ने दोनों राजकुमारों के आने का समाचार सुनकर उन दोनों के दो अभिनंदन पत्र बना रक्खे थे। सबेरे जब कुँवर पृथ्वीसिंह संध्या आदि नित्य कार्यों से निपट कर बैठे तो, वह उनके सामने आई और उसने सुंदर कुश की चँगेली में अभिनन्दन पत्र रखकर दिया। पृथ्वीसिंह ने उसे प्रसन्नता से ले लिया। कविता यद्यपि उतनी बढ़िया न थी, पर वह नई वीरता से भरी हुई थी। वे वीररस के प्रेमी थे उसको पढ़कर बहुत खुश हुए और उन्होंने मोतियों का एक हार उपहार दिया।

व्रजविलासिनी यहाँ से छुट्टी पाकर कुँवर धर्मसिंह के पास पहुँची। वे बैठे हुए राजनंदिनी को लड़ाई की घटनाएँ सुना रहे थे, पर ज्यों ही व्रजविलासिनी की आँख उन पर पड़ी, वह खिन्न होकर पीछे हट गई। उसको देखकर धर्मसिंह के चेहरे का रंग उड़ गया, होंठ सूख गए और हाथ-पैर सनसनाने लगे। व्रजविलासिनी तो उलटे पाँव लौटी, पर धर्मसिंह ने चारपाई पर लेट कर दोनों हाथों से मुँह ढाँक लिया। राजनंदिनी ने यह दृश्य देखा और उसका फूल-सा बदन पसीने में तर हो गया। धर्मसिंह सारे दिन पलंग पर चुपचाप पड़े करवटें बदलते रहे। उनका चेहरा ऐसा कुम्हला गया, जैसे वे बरसों के रोगी हों। राजनंदिनी उनकी सेवा में लगी हुई थी। दिन तो यों कटा, रात को कुँवर साहब संध्या ही से थकावट का बहाना करके लेट गए। राजनंदिनी हैरान थी कि माजरा क्या है। व्रजविलासिनी इन्हीं के खून की प्यासी है क्या? संभव है कि मेरा प्यारा, मुकुट धर्मसिंह ऐसा कठोर हो? नहीं! नहीं!! ऐसा नहीं हो सकता। यद्यपि चाहती है कि अपनी भावों से उनके मन का बोझ हलका करे. पर नहीं कर सकती। अंत को नींद ने उसको अपनी गोद में ले लिया।  

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