कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 23 प्रेमचन्द की कहानियाँ 23प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग
दुर्गाकुँवर- ''बड़ी अनमोल पुस्तक है। सखी! तुम्हारी बगल में जो आलमारी रक्खी है; उसमें वह पुस्तक है, जरा निकालना।''
व्रजविलासिनी ने पुस्तक उतारी और उसका पहला पृष्ठ खोला था कि उसके हाथ से पुस्तक छूट कर गिर पड़ी। उसके पहले पृष्ठ पर एक तसवीर लगी हुई थी, वह उसी निर्दय युवक की तसवीर थी जो उसके बाप का हत्यारा था। ब्रजविलासिनी की आंखें लाल हो गईं, त्योरी पर बल पड़ गए। अपनी प्रतिज्ञा याद आ गई। पर उसके साथ ही यह विचार उत्पन्न हुआ कि इस आदमी का चित्र यहाँ कैसे आया और इसका इन राजकुमारियों से क्या संबंध है। कहीं ऐसा न हो कि मुझे इनका कृतज्ञ होकर अपनी प्रतिज्ञा तोड़नी पड़े। राजनंदिनी ने उसकी सूरत देखकर कहा- ''सखी; क्या बात है? यह क्रोध क्यों?''
ब्रजविलासिनी ने सावधानी से कहा- ''कुछ नहीं, न जाने क्यों चक्कर आ गया था।''
आज से ब्रजविलासिनी के मन में एक और चिंता उत्पन्न हुई- ''क्या मुझे राजकुमारियों का कृतज्ञ होकर अपना प्रण तोड़ना पड़ेगा?''
पूरे सोलह महीने के बाद, अफ़गानिस्थान से पृथ्वीसिंह और धर्मसिंह लौटे। बादशाह की सेना को बड़ी-बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। बर्फ अधिकता से पड़ने लगी। पहाड़ों के दर्रे बर्फ से ढक गए। आने-जाने के रास्ते बंद हो गए। रसद के सामान कम मिलने लगे। सिपाही भूखों मरने लगे। तब अफ़गानों ने समय पाकर रात को छापे मारने शुरू किए। आखिर शाहजादे मुहीउद्दीन को हिम्मत हारकर लौटना पड़ा।
दोनों राजकुमार ज्यों-ज्यों जोधपुर के निकट पहुँचते थे, उत्कंठा से उनके मन उमड़े आते थे। इतने दिनों के वियोग के बाद फिर भेंट होगी। मिलने की तृष्णा बढ़ती जाती हैं। रात-दिन मंजिलें काटते चले आते हैं, न थकावट मालूम होती है, न माँदगी। दोनों घायल हो रहे हैं, पर फिर भी मिलने की खुशी में जख्मों की तकलीफ़ भूले हुए हैं। पृथ्वीसिंह दुर्गाकुँवर के लिए एक अफ़गानी कटार लाए हैं। धर्मसिंह ने राजनंदिनी के लिए काश्मीर का एक बहुमूल्य शाल का जोड़ा मोल लिया है। दोनों के दिल उमंग से भरे हुए हैं।
राजकुमारियों ने जब सुना कि दोनों वीर वापस आते हैं, तो वे फूले अँगों न समाईं।
सिंगार किया जाने लगा, माँग मोतियों से भरी जाने लगी, उनके चेहरे खुशी से दमकने लगे। इतने दिनों के बिछोह के बाद फिर मिलाप होगा, खुशी आँखों से उबली पड़ती है। एक-दूसरे को छेड़ती हैं और खुश होकर गले मिलती हैं।
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