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वीर बालिकाएँ

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9732
आईएसबीएन :9781613012840

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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ

सरदारबाई

गुजरात में रानीपुर नाम का एक छोटा-सा हिंदू-राज्य था। वहाँ के राजा थे खेमराज। राजा खेमराज का पुत्र मूलराज नीच स्वभाव का जुआरी और शराबी था, लेकिन राजा की पुत्री सरदारबाई अत्यन्त सुन्दरी और बहादुर थी।

उस समय दिल्ली के बादशाह का सूबेदार रहमतखाँ शाही कर वसूल करने गुजरात आया था। यह तेरहवीं शताब्दी की बात है। रानीपुर राज्य में नगर से बाहर कोई उत्सव हो रहा था। नगर के सब पुरुष उत्सव देखने गये थे। ऐसे अवसर पर रहमतखाँ घोड़े पर सवार होकर दो-चार सिपाहियों के साथ नगर में घूम रहा था। उसी समय उसने राजकुमारी सरदारबाई को देख लिया और उसकी सुन्दरता पर मोहित हो गया।

रात के समय रहमतखाँ ने राजकुमार मूलराज को अपने डेरे में बुलाकर शराब पिलायी। शराब के नशे में राजकुमार मूलराज जुआ खेलने लगा। रहमतखाँ के उकसाने पर उसने अपनी बहिन को दाँव पर लगाया और हार गया। दूसरे दिन सबेरा होते ही रहमतखाँ ने राजकुमारी को लेने के लिये राजमहल के दरवाजे पर पालकी भेज दी। जब राजा खेमराज को इसका पता लगा तो उन्होंने पालकी को तुड़वाकर फेंकवा दिया और पालकी लाने वालों को कैद कर लिया।

यह समाचार रहमतखाँ को मिला। उसने मूलराज को आगे किया और वह गुप्त मार्ग से किले में पहुँच गया। राजपूत सैनिकों को इसका पता नहीं था; लेकिन राजमहल की स्त्रियों ने झटपट तलवारें सम्हाल लीं। विश्वासघाती राजकुमार मूलराज की स्त्री उन सब स्त्रियों के आगे थी। उसने मुसलमानों के आगे आते मूलराज को देखा तो सिहिंनी के समान टूट पड़ी और मूलराज की छाती में उसने तलवार घुसेड़ दी। इसके बाद उसने वही तलवार निकालकर अपनी छाती में मारते हुए कहा- 'मैंने अपने पति के पाप का प्रायश्चित्त कर दिया है। अब अपने पाप का प्रायश्चित्त कर रही हूँ।'

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