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ई-पुस्तकें >> वीर बालिकाएँ वीर बालिकाएँहनुमानप्रसाद पोद्दार
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152 पाठक हैं |
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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ
कृष्णा
मेवाड़ के महाराजा भीमसिंह की पुत्री कृष्णा अत्यन्त सुन्दरी थी। उससे विवाह करने के लिये अनेक वीर राजपूत उत्सुक थे। जयपुर और जोधपुर के नरेशों ने उससे विवाह करने की इच्छा प्रकट की थी। मेवाड़ के महाराणा ने सब बातों को विचार करके जोधपुर-नरेश के यहाँ अपनी पुत्री की सगाई भेजी।
जब जयपुर के नरेश को इस बात का पता लगा कि मेवाड़ के महाराणा ने मेरी प्रार्थना अस्वीकार कर दी और अपनी पुत्री का विवाह जोधपुर कर रहे हैं तो उन्होंने इसे अपना अपमान समझा। वे चित्तौड़ पर चढ़ाई करने की तैयारी करने लगे।
जोधपुर-नरेश इस बात को कैसे सह सकते थे कि उनके सगाई करने के कारण कोई चित्तौड़ पर आक्रमण करे। फल यह हुआ कि पहिले जयपुर और जोधपुर के नरेशों में ही ठन गयी। दोनों ओर के राजपूत सैनिक युद्ध करने लगे। भाग्य जयपुर-नरेश के पक्ष में था। जोधपुर की सेना हार गयी, जयपुर-नरेश विजयी हो गये! अब उन्होंने मेवाड-नरेश के पास संदेश भेजा कि अपनी पुत्री कृष्णा का विवाह वे उनसे कर दें।
मेवाड़ के महाराणा ने कर दिया- 'मेरी पुत्री कोई भेड़-बकरी नहीं है कि लाठी चलाने वालों में जो जीते वही उसे हाँक ले जाय। मैं उसके भले-बुरे का विचार करके ही उसका विवाह करूँगा।'
जब जयपुर यह समाचार पहुँचा तो वहाँ की सेना ने कूच कर दिया। जयपुर-नरेश ने मेवाड़ के पास पड़ाव डाल दिया और महाराणा को धमकी दी- 'कृष्णा अब मेवाड़ में नहीं रह सकती। या तो उसे मेरी रानी होकर जयपुर चलना होगा या मेरे सामने से उसकी लाश ही निकलेगी।'
महाराणा भीमसिंह बड़ी चिन्ता में पड़ गये। मेवाड़ की छोटी-सी सेना जयपुर-नरेश का युद्ध में सामना नहीं कर सकती थी। इस प्रकार की धमकी पर पुत्री को दे देना तो देश के लिये पराजय से भी बड़ा अपमान था। अन्त में उन्होंने जयपुर-नरेश की बात पकड़ ली- 'कृष्णा की लाश ही निकलेगी।'
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