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वीर बालिकाएँ

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9732
आईएसबीएन :9781613012840

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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ

पहले तो विद्युल्लता की समझ में ही बात नहीं आयी कि समरसिंह ऐसी बात क्यों कहता है, किंतु जब समरसिंह ने बताया कि वह विद्युल्लता के मोह के कारण ही युद्ध से भागकर आया है, तब विद्युल्लता गरज उठी- 'तुम क्या सोचते हो कि तुम्हारे-जैसे कायर से मैं विवाह कर लूँगी? कोई राजपूत-कुमारी किसी युद्ध से भागने वाले कायर पर थूकना भी नहीं चाहेगी। तुम्हें मेरा हाथ पकड़ना है तो युद्ध में जाकर अपनी वीरता दिखलाओ। युद्ध में तुम मारे गये तो सती होकर स्वर्ग में मैं तुमसे मिलूँगी।’ विद्युल्लता समरसिंह को फटकार कर अपने घर चली गयी। समरसिंह निराश होकर लौट पड़ा। वह अलाउद्दीन की सेना को देखकर डर गया था। विद्युल्लता की सुन्दरता पर वह मोहित हो गया था और इसीलिये मरने से उसे डर लगता था। उसने समझ लिया कि युद्ध समाप्त होने पर ही विद्युल्लता उसे मिल सकती है। मोह के वश होकर वह शत्रुओं से मिल गया। जब अलाउद्दीन ने चित्तौड़ जीत लिया तो सैकड़ों मुसलमान सैनिकों के साथ समरसिंह विद्युल्लता से मिलने चला।

विद्युल्लता ने जब समरसिंह को आते देखा तो हैरान रह गयी। मुसलमान सैनिकों के साथ उसे आते देखकर वह समझ गयी कि समरसिंह देशद्रोही है। पास पहुँचकर समरसिंह ने विद्युल्लता का हाथ पकड़ना चाहा किन्तु वह पीछे हट गयीं और डाँटकर बोली- ‘तू अधम देशद्रोही है। मेरे शरीर को छूकर मुझे अपवित्र मत कर। शत्रुओं से मिलकर मेरे पास आते तुझे लज्जा नहीं आयी? जा, कहीं दो चुल्लू पानी में डूब मर। विश्वासघाती कायरों के लिये यहाँ स्थान नहीं है।'

समरसिंह विजय के घमंड में था। वह विद्युल्लता को पकड़ने आगे बढ़ा, लेकिन विद्युल्लता ने झट से अपनी कटार खींच ली और अपनी छाती पर दे मारी। समरसिंह उसे पकड़ सके इसके पहिले तो वह पवित्र राजपूत-बालिका शरीर छोड़कर देवताओं के दिव्य लोक में चली गयी थी।

समरसिंह के हाथ लगा केवल उसका प्राणहीन शरीर और देश से विश्वासघात करने का कलंक।

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