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वीर बालक
वीर बालक
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9731
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आईएसबीएन :9781613012840 |
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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ
वीर बालक जेरापुर-नरेश
हैदराबाद राज्य के पास जेरापुर नाम की एक छोटी-सी हिंदू रियासत थी। सन् 1857 के विद्रोह में वहाँ के राजा ने अंग्रेजों से लडने के लिये अरब और रोहिला-पठानों की एक सेना जुटायी, लेकिन वह राजा उस समय बालक ही था। उस समय के हैदराबाद निजाम के मन्त्री सालारजंग ने उसे धोखे से गिरफ्तार कर लिया और अंग्रेजों को सौंप दिया।
कर्नल मेटोज टेलर नाम के एक अंग्रेज अधिकारी से इस राजा का बड़ा प्रेम था। राजा उन्हें 'अप्पा' कहा करता था। कर्नल टेलर राजा से जेलखाने में मिलने गये और बालक समझकर उन्हें फुसलाने लगे- 'यदि तुम दूसरे विद्रोह करने वालों का नाम बता दोगे तो तुम्हें क्षमा कर दिया जायगा।' लेकिन सच्चे और बहादुर बालक अपने साथियों से विश्वासघात नहीं करते। राजा ने हँसकर कहा- 'अप्पा! मैं किसी का नाम नहीं बताऊँगा। अपना प्राण बचाने के लिये मैं अपने देश के भाइयों को संकट में नहीं डालूँगा। मैं तो आप लोगों से क्षमा भी नहीं माँगना चाहता। दूसरों की दया पर मुझे कायर के समान जीना अच्छा नहीं लगता।'
कर्नल टेलर ने कहा 'तुम जानते हो कि मुझे प्राणदण्ड मिलेगा? उस बालक राजा ने कहा- 'हाँ, मैं जानता हूँ लेकिन मेरी एक प्रार्थना मानो तो मुझे फाँसी पर मत चढ़ाना। मैं चोर नहीं हूँ। मुझे तोप से उड़ा देना। तुम भी देखना कि मैं तोप के मुँह के सामने किस प्रकार शान्ति से खड़ा रहता हूँ।
कर्नल टेलर के कहने से राजा को बालक समझकर काले-पानी की सजा दी गई। सजा सुनकर राजा ने कहा - जेल और कालेपानी की सजा तो मेरे यहाँ का एक कंगाल पहाड़ी भी पसंद नहीं करेगा, मैं तो राजा हूँ। कालेपानी के बदले मैं मृत्यु पसंद करता हूँ। राजा ने एक अंग्रेज पहरेदार के हाथ से झटककर पिस्तौल छीन ली और अपने ऊपर गोली दाग दी।' एक सुकुमार बालक की यह वीरता देखकर अंग्रेजों को भी उसकी प्रशंसा करनी पड़ी।
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