लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> वीर बालक

वीर बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9731
आईएसबीएन :9781613012840

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

178 पाठक हैं

वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ


विजयसिंह का एक पुत्र था, वह केवल नौ वर्ष का था। उसका नाम था जालिमसिंह। वह भी इस लडाई में अपने पिता के साथ था। जब विजयसिंह घोडे से लुढ़ककर नीचे गिरा तो उसका पुत्र जालिमसिंह नंगी तलवार लेकर पिता की मृत देह की रक्षा करने के लिये दौड़ा। चारों ओर अलीवर्दी खाँ की सेना जय-जयकार कर रही थी। रणभेरी ध्वनि से दिशाएँ कम्पायमान हो रही थीं, परंतु वह नौ वर्ष का बालक जरा भी नहीं सहमा। अपनी छोटी-सी तलवार लेकर सिंह-शावक के समान गरजने लगा। पिता के शरीर को मुसलमान स्पर्श न करें, इसलिये अपने प्राणों की परवाह न करके निर्भय होकर वह लडाई में झूम रहा था। दुश्मनोँ ने उसे चारों ओर से घेर लिया था, परंतु वह वीर बालक तनिक न डिगा। अपनी नन्हीं तलवार चारों ओर चलाने लगा। अलीवर्दी खाँ खुद ही वहाँ हाजिर था। बालक के अद्भुत साहस और पितृभक्ति को देखकर वह दंग हो गया। उसने सैनिकों को विजयसिंह की मृत देह का योग्य दाह-संस्कार कराने का हुक्म दिया।

सैनिक बालक की वीरता पर प्रसन्न होकर उसे कंधे पर बैठाकर ले गये। बालक ने भागीरथी के तट पर दाह-संस्कार करके पिता की पवित्र राख को गंगाजी में बहा दिया।

पवित्र भागीरथी उस पवित्र राख को अपनी छाती पर रखकर कलकल ध्वनि से बह रही थी और बालक वहाँ से उदास होकर तंबू में लौट आया।

मुर्शिदाबाद के इतिहास में गिरिया की लड़ाई बहुत प्रसिद्ध है। राजपूत बालक जालिमसिंह की अद्भुत कथा ने लड़ाई को अधिक प्रसिद्ध कर दिया है।

जिस जगह वीर बालक ने अपनी वीरता दिखलायी थी, वह आज भी जालिमसिंह के माठ के नाम से विख्यात है।

* * *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book