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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

13

''मुझे विश्वास नहीं आ रहा जान।'' रशीद ने आश्चर्य से दुख:भरी आवाज में कहा।

''लेकिन यह सच है मेजर... गुरनाम का खून कर दिया गया है।'' जान ने व्हिस्की का एक घूंट गले में उतारते हुए कहा।

''यह अच्छा नहीं हुआ। उसका खून हमारे रिंग को ख़तरे में डाल सकता है।''

''लेकिन और कोई चारा भी नहीं था। उसे रास्ते से न हटा दिया जाता तो 555 का भेद खुल जाता।''

''555 की सरगरमियों की खबर तो वैसे भी हैड क्वार्टर तक पहुंच ही चुकी है। तभी तो वह फ़िल्म उस तक पहुंची थी।''

''लेकिन वह फ़िल्म तो 'ब्लैंक' थी। गुरनाम ने हमें चकमा दिया था।'' रुख़साना ने पहली बार उनकी बातों में बोलते हुए कहा।

''असली फ़िल्म होटल के कमरे से पुलिस को मिल चुकी है।'' रशीद ने उन दोनों के चेहरों को तेज़ नज़रों से देखते हुए कहा।

यह सुनते ही जान के हाथ से व्हिस्की का गिलास फिसलकर फ़र्श पर गिर पड़ा और कांच के टकडे उसके निश्चय के समान बिखर गए। रशीद उन दोनों के चेहरों का उतार-चढ़ाव देखता हुआ बोला-''अब हमें हर कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा।''

''उस फ़िल्म में क्या था?'' जान ने सूखे होंठों को तर करते हुए पूछा।

''शायद हमारे जासूसों की तस्वीरें। दो-एक दिन में पता चल जायेगा।''

''अब हमें क्या करना होगा?'' जान ने घबड़ाकर पूछा।

''इससे पहले कि पुलिस कोई क़दम उठाए, पीर बाबा के डेरे से सबकुछ हटा दिया जाए। कोई निशान वहां नहीं रहना चाहिए... और तुम दोनों कुछ दिनों के लिए फ़ौरन कश्मीर छोड़कर चले जाओ।''

''कहां...?'' जान ने जल्दी-से पूछा।

''आज़ाद कश्मीर...बाकी इन्स्ट्रक्शन्स तुम्हें उस्मान बेकरी वाले से मिल जाएंगी।''

''मुझे भी जान के साथ जाना होगा क्या?'' रुख़साना ने पूछा।

''नहीं...बेहतर होगा, तुम कहीं और चली जाओ। कुछ दिनों तक तुम्हें हम सबसे अलग रहना होगा।'' यह कहते हुए रशीद उस हाउस-बोट के बाहरी दरवाज़े तक चला आया और दरवाज़ा खोलकर बाहर झांकने लगा।

चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था। हाउस-बोट डल झील में चलते-चलते एक उजाड़, सूने किनारे पर आ लगी थी। दूर-दूर तक कोई आवाज़ सुनाई नहीं देती थी। रात के इस सन्नाटे में बस झींगुरों की आवाज़ सुनाई दे रही थी।

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