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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''ओह तो आप हैं, जिन्होंने यह फ़िल्म मेरे कमरे से उड़वाई है। आपकी मंगेतर तो काफ़ी वफ़ादार लगती है। आपकी मदद करते-करते अपना तन-मन सब कुछ गंवा बैठती है।'' गुरनाम ने व्यंग से कहा।

''कौन हो तुम?'' जान जानते हुए भी अनजान बनकर पूछ बैठा। उसने जेब में हाथ डालकर अपना रिवाल्वर निकालना चाहा। गुरनाम ने झट गोली चला दी जो उसके बाजू की खाल को छूती हुई दीवार से जा टकराई। उसके मुंह से एक कराह निकली और झट उसने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा दिए। गुरनाम ने रुख़साना का बाजू बाएं हाथ से पकड़कर एक झटके के साथ उसे जान के साथ खड़ा किया और उनकी आंखों के सामने रिवाल्वर हिलाता हुआ जान से बोला-''मैं कौन हूं...यह तो तुम अच्छी तरह जानते हो, वर्ना अपनी इस फुलझड़ी को मेरे पीछे न लगाते। इस वक़्त तो मैं तुम्हारा असली रूप जानना चाहता हूं। तुम्हारे और कितने साथी हैं, इस फुलझड़ी के अलावा? 555 रिंग का चीफ़ कौन है? अब तक तुमने क्या-क्या जासूसी की है? साफ़ बता दोगे तो जान से नहीं मारूंगा यह वादा रहा..नहीं तो मैं दस तक गिनती गिनूंगा। इस बीच में अगर तुमहारी ज़बान न खुली तो मेरे रिवाल्वर की दो गोलियां और ख़र्च होंगी और जब तक तुम्हारे गुरगों को पता चलेगा, तुम्हारी लाशें बिना कफ़न यहीं सड़ती रहेंगी। बोलो-बताते हो नाम या शुरू करूं गिनती?''

वे दोनों उसकी धमकी सुनकर भी चुप रहे तो गुरनाम ने गिनना आरम्भ कर दिया और उनके चेहरों को बदलती रंगत को देखने लगा। अभी वह पांच तक ही गिन पाया था कि अचानक जान फुर्ती से उछला और अपने पीछे दीवार से जा टकराया। इसके साथ ही गुरनाम की उंगली ट्रिगर पर दब गई। कमरे में एक ज़ोरदार धमाका हुआ...लेकिन बजाय इसके कि गोली किसी को निशाना बनाती, गुरनाम स्वयं ही लड़खड़ा गया। उसके पैरों तले की ज़मीन खिसक गई। फ़र्श में एक खाई उत्पन्न हुई और वह ज़मीन के नीचे उस खाईं में समा गया।

जान और रुख़साना ने उस अंधेरे कुएं में झांका, जिसकी गहराई में गुरनाम समा गया था और नीचे अंधकार में उसकी चीख़ की अंतिम गूंज सुनाई दे रही थी।

जान ने आगे बढ़कर दीवार पर लगे एक बटन को दबाया। खाई की ज़मीन फिर बराबर हो गई और वह माथे का पसीना पोंछता हुआ रुख़साना की ओर बढ़ा जो अभी तक स्थिर खड़ी थी और उसके होंठ कंपकंपा रहे थे।

उसने जान से नज़रें मिलाई। कुछ कहने को उसके होंठ खुले, लेकिन फिर अचानक एक चीख उसके मुंह से निकली और वह जान के पास जाकर उसके सीने से लग गई। फिर उसके सीने में मुंह छिपाकर सिसक-सिसक रोने लगी।

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