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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

तभी पेड़ों के झुंड में से एक शिकारा बाहर निकला और हाउस-बोट के किनारे आ लगा। रशीद चुपके से हाउस-बोट छोड कर उस शिकारे में आ बैठा। जान और रुख़साना हाउस-बोट के ज़ीने तक चले आए। रशीद ने उन्हें धीमी आवाज़ में गुडलक कहा और मांझी ने शिकारा आगे बढ़ा दिया।

जान और रुख़साना के देखते-देखते शिकारा पेड़ों के उसी झुंड में ग़ायब हो गया, जहां से वह निकलकर आया था। रुख़साना ने व्हिस्की का एक ताज़ा जाम बनाया और जान को देते हुए बोली- ''आज़ाद कश्मीर कैसी जगह है?''

''नानसेन्स...मेरा तो जी चाहता है कि इस जाल से बाहर निकल जाऊं।''

''अब यह मुमकिन नहीं डीयर।''

''क्यों?''

''हिंदुस्तान में रहोगे तो एक न एक दिन पकड़े जाओगे पाकिस्तान वालों से दगा करोगे तो गोली का निशाना बना दिए जाओगे।''

''ओह...शट अप।'' जान गुस्से में झुंझलाया और फिर व्हिस्की का एक बड़ा घूंट लेते हुए रुख़साना से पूछ बैठा-''लेकिन तुमने क्या सोचा है?''

''दिल्ली चली जाऊंगी...शायद पुराना काम मिल जाए।''

''और अगर पुलिस तुम तक भी पहुंच गई तो?''

''तो क्या? मैं मौत से नहीं डरती। रुख़साना ने लापरवाही से कहा और फिर अपने लिए एक जाम बनाकर जान के जाम से धीरे से टकराया।

जान ने आगे बढ़कर उसे आलिंगन में भर लिया और मुस्कराती नज़रों से उसे देखते हुए बोला-''फारगेट इट...।''

''लो भूल गई...चलो मोहब्बत की बातें करो। शायद यह हम दोनों के मिलन की आखिरी रात हो।''

''नहीं डार्लिंग...आखिरी मत कहो। इंशा अल्लाह हम फिर मिलेंगे।'' जान ने कहा और रुख़साना को खींचकर अपनी गोद में बैठा लिया। खिड़की से आती चांद की रोशनी में दो जवानियां आपस में गले मिलने लगीं।

हाउस-बोट पल-पल सरकती रात के समान झील के तल पर डोलती आगे बढ़ती गई।

घटना के तीन दिन बाद गुरनाम सिंह की लाश मिली। लाश श्रीनगर से कोई पचास मील दूर कंगन वादी में बहती बरफ़ीली सिंधु नदी में पाई गई। इस भयानक घटना की चर्चा श्रीनगर के शहरी और फ़ौजी इलाके में जंगल की आग के समान फैल गई।

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