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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

गुरनाम ने खाने के लिए पूछा तो रुख़साना ने झट उसकी बात काट दी और बोली-''खाना तो हम हर रोज़ खाते हैं।''

''लेकिन पीना भी तो हर रोज़ हो जाता है।''

''हां...लेकिन आपके साथ पहली बार हुआ है।'' रुख़साना ने बड़े मन मोह लेने वाले भाव से कहा और फिर गुरनाम के गाल से गाल मिलाकर इठलाती हुई बोली-''आप कितने अच्छे हैं सरदार जी।''

''सच...? तो फिर एक बात मानो हमारी।''

''क्या? हुक्म दीजिए।''

''अब पीना बंद कर दो।''

''क्यों?''

''हमें नशा हो गया है। अगर नशे में हम कोई गुस्ताखी कर बैठे तो...।''

''क्या होगा?'' रुख़साना ने अदा से झूमते हुए उसी का प्रश्न दोहराया।

''जान हमसे जल उठेगा।''

''जलने दो उसे। आज की रात तो हम चाहते हैं कि कोई हम से 'गुस्ताख़ी' करे।'' रुख़साना ने मुस्कराकर कहा और साथ ही पलट कर कमरे की लाइट आफ़ कर दी।

गुरनाम रुख़साना का यह बेवाक वाक्य सुनकर क्षणभर के लिए तो झेंप गया, लेकिन फिर अंधेरे में ही उसके अर्धनग्न शरीर को घूरने लगा जो अब पहले से और अधिक आकर्षक हो गया था। शराब के उन्माद से रुख़साना की आंखों में लाली उतर आई थी। वह गुरनाम के पहल करने की प्रतीक्षा कर रही थी। किंतु जब वह उसी प्रकार अपने स्थान पर खड़ा उसे घूरता रहा तो वह स्वयं ही उछल कर उसकी बांहों में आ गई।

गुरनाम आखिर मर्द था...। औरत को भी बह शराब के समान एक नशा ही समझता था जो बस उन्माद देकर झोंके के समान चली जाए और लौटकर न आए। रुख़साना के कोमल और गरम शरीर की तपन ने उसकी धमनियों में दौड़ते हुए खून को खौला दिया। दिल की धड़कन तेज हो गई और उसने दीवानगी में रुख़साना को अपनी बांहों में भींच लिया। वह एक नागिन के समान उसकी बांहों में मचली, सरसराई और धीरे-धीरे उसने गुरनाम के सारे शरीर को अपनी लपेट में ले लिया।

रात आधी से अधिक बीत चुकी थी। गुरनाम नंग-धड़ंग बिस्तर पर औंधा लेटा हुआ था। उसके भारी खर्राटों की आवाज़ कमरे में गूंज रही थी। रुख़साना गुरनाम के साथ अर्धनग्न अवस्था में लेटी अभी तक जाग रही थी और आंखें खोले छत को घूर रही थी। गुरनाम का दायां हाथ अभी तक उसकी कमर में था, जैसे सोते में भी वह उसे अपने पास से अलग न करना चाहता हो।

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