ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''हां...आपके दोस्त की दी हुई सौगंध भी न टूटेगी और मेरा प्यार भी आपके दिल के पास रहेगा।''
''लेकिन...।''
''लेकिन-वेकिन क्या...आपके लिए ये दो होंगे, मेरे लिए तो दोनों एक हैं। ईश्वर, अल्लाह तेरे नाम, सबको सम्मति दे भगवान।'' यह कहते हुए पूनम ने लॉज की ओर देखा जहां से कमला आंटी बैग हाथ में उठाए उनकी ओर आ रही थीं। रशीद ने आगे बढ़कर उनके पांव छूए और फिर उनके साथ-साथ क़दम उठाता हवाई जहाज़ की ओर चल दिया। पूनम ने उसे जल्दी छुट्टी लेने का अनुरोध किया और रशीद ने बचन निभाने की प्रतिज्ञा की। फ़ौजी अफ़सर होने के कारण किसी ने उसे दरवाज़े पर नहीं रोका और वह उनके साथ-साथ हवाई जहाज़ की सीढ़ी तक आ गया।
जब पूनम आंटी के साथ सीढ़ियां चढ़कर हाथ हिलाती हुई हवाई जहाज़ के अंदर चली गई तो रशीद को पहली बार अनुभव हुआ कि पूनम से प्रेम का अभिनय करते-करते उसे सचमुच पूनम से एक गहरा लगाव-सा हो गया था। वह एक अनोखा अपनापन-सा अनुभव करने लगा। कहीं यह अपनापन उसकी निर्बलता न बन जाए और उसके माथे पर पाप का कलंक न लगा दे। यह सोचकर वह खड़े-खड़े यों कांप गया जैसे सचमुच उससे यह पाप हो गया हो।
सीढ़ी बंद हो गई। हवाई जहाज़ के पंखे तेज़ी से घूमने लगे और उनके शोर से वातावरण जैसे थर्रा गया। थोड़ी ही देर में हवाई जहाज़ रनवे से ऊंचा उठकर आसमान की ओर उड़ता दिखाई दिया। रशीद मौन खड़ा बड़ी देर तक उस हवाई जहाज़ को देखता रहा जो पूनम को लिए दिल्ली की ओर उड़ा जा रहा था।
हवाई जहाज़ जब दृष्टि से ओझल हो गया तो वह वापस जाने को पलटा। लेकिन फिर अचानक उसे ठिठककर वहीं रुक जाना पड़ा। वह आश्चर्य से गुरनाम को देखने लगा जो एक लंबा ओवर-कोट पहले उसके पीछे खड़ा था।
''गुरनाम...तुम यहां!'' उसके मुंह से निकला।
''हां...अचानक हैड क्वार्टर से फ़ोन मिला कि मेरे नाम एक पार्सल भेजा गया है।'' कहते हुए गुरनाम ने एक छोटा-सा पार्सल उसे दिखाया और फिर जेब में रखते हुए बोला-''इसे लेने एयरपोर्ट आया था।''
''क्या है इस पार्सल में?'' रशीद से पूछे बिना न रहा गया।
''होगी कोई रिपोर्ट, दुश्मन के जासूसों के बारे में। कुछ ताज़ा क्लूज़ या कुछ तस्वीरें अथवा फ़िल्म इत्यादि।'' गुरनाम लापरवाही से कह गया।
''लेकिन तुम अचानक घर से क्यों चले गए?''
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