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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''भई अचानक क्यों...स्नान किया, नाश्ता लिया और तुम्हारे अर्दली को समझाकर आया था कि तुम सुबह उठो तो मेरे लिए परेशान न हो जाओ।''

''यह तुमने अच्छा नहीं किया।''

''नहीं यार, अच्छा ही हुआ जो मैं अपने होटल में चला गया। वर्ना अगर हैड क्वार्टर का यह संदेश मुझ तक न पहुंचता तो मेरे विरुद्ध ज़रूर कोई ऐक्शन ले लिया जाता।''

''कहां ठहरे हो?''

''अभी तो ओबेराय पैलेस में।''

''अभी क्यों?''

''दुश्मन को झांसा देने के लिए अड्डा बदलते रहना पड़ेगा। कभी इस होटल में, कभी उस होटल में। कभी किसी सराय में, तो कभी हाउसबोट में। लेकिन घबराओ नहीं, हर शाम व्हिस्की तुम्हारे ही यहां पिऊंगा।''

''ज़रूर...तो फिर आज आ रहे हो न?''

''आज नहीं, कल से! आज मेरा अपाइंटमेंट है एक लड़की से।'' गुरनाम ने ज़बान होंठों पर फेरते हुए कहा और फिर कुछ रुककर बोला-''अमां हां यार रात हमसे कोई बदतमीज़ी तो नहीं हुई थी व्हिस्की पीने के बाद?''

''नहीं तो।''

''न जाने क्यों रातभर सिर बोझिल रहा। कुछ ऐसा याद आता रहा जैसे मैंने अकारण किसी को गालियां दी हों। मेरे साथ यह बड़ी कमज़ोरी है, शराब पीने के बाद लड़कियों को छेड़ बैठता हूं।''

रशीद ने गुरनाम की बातचीत को और न बढ़ने दिया और उसे अपने साथ लेकर वहां से चल पड़ा। फिर उसने उसे चौक बाज़ार में छोड़ दिया, जहां से गुरनाम को कुछ चीज़ें खरीदनी थीं। रशीद को स्वयं भी दफ़्तर जाने की जल्दी थी।

लेकिन दफ़्तर जाने से पहले वह सीधा जान के नये ठिकाने पर पहुंचा। इस ठिकाने का पता जान ने उसे पिछली रात बताया था। वहां उसने जान को गुरनाम के होटल के ठिकाने की सूचना दी और उस पार्सल के बारे में बताया जो वह एयरपोर्ट से साथ ले गया था। उसने जान पर अपनी इस शंका को भी व्यक्त किया कि हो सकता है, भारत सरकार को उसी पर संदेह हो और गुरनाम को रणजीत का घनिष्ट मित्र होने के नाते उसके पीछे लगा दिया गया हो।

''नहीं, यह मुमकिन नहीं। आप पर शक करने का कोई वजह नहीं।'' जान ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा।

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