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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''हां। उस जीवन के बारे में विचार कर रही हूं। जब मेरे सिर पर भारी उत्तरदायित्व होगा। सुबह से शाम तक चौके की चिन्ता, नौकरों पर दष्टि, मेहमानों की देख-भाल, बच्चों का ध्यान...घर की सफ़ाई...महीनें भर के बजट का नाप-तोल...कहिए, कैसा रहेगा यह जीवन?''

''तुम तो बहुत दूर की सोचने लगीं।'' रशीद ने कुछ बुझे हुए स्वर में कहा।

पूनम ने गहरी दृष्टि से उसे देखा और झट अपनी प्लेट से एक ग्रास उठाकर उसके मुंह में ठूंसते हुए बोली-''शायद तुम यह सब कुछ नहीं सोचते होगे। मैं तो रात-दिन उस दिन की कल्पना में डूबी रहती हूं, जब तुम 'तुम' न रहोगे और मैं 'मैं' न रहूंगी।''

तभी पास खड़ी कुछ औरतों की हंसी ने उन्हें चौंका दिया। वे लोग उसी की बात सुनकर हंस पड़ी थीं। रशीद तो कुछ सोचकर वहां से खिसक गया, किन्तु पूनम ढीठ बनी, वहीं खड़ी रही और उन औरतों की ओर पलट कर बोली-''It is just the beginning''

पार्टी के बाद जब रशीद पूनम को छोड़ने उसके घर की ओर जा रहा था तो रास्ते में उसके साथ फ्रंट सीट पर बैठे हुए पूनम अपने कुछ अधिकारों का प्रयोग करने लगी। वह अपनी सीट से खिसकते-खिसकते बिल्कुल उससे सट गई और फिर धीरे से अपना सिर रशीद के कन्धे पर टिका दिया।

पूनम की लहराती जुल्फ़ें बार-बार उड़कर रशीद के चेहरे पर, आ जातीं और वह उन्हें प्यार से हटा देता। पूनम इस खेल से आनन्दित हो रही थी। उस पर एक नशा-सा छाने लगा था।

रशीद रात के सन्नाटे में धीमी गति से जीपगाड़ी चलाता हुआ चश्मा शाही की टूरिस्ट लॉज की ओर बढ़ रहा था। उसकी दृष्टि सामने सड़क पर थी जहां चिनार की लम्बी परछाइयों के कारण अंधेरा था। गाड़ी की हैड लाइट का प्रकाश उस अंधेरे को चीरता चला जा रहा था।

पूनम की निकटता की गर्मी और कोमलता से एकाएक उसकी कल्पना उसे 'मरी' की सुन्दर वादियों में ले गई, जहां वह पहली बार सलमा के साथ 'हनीमून' मनाने गया था। सलमा को रात के सन्नाटे में ड्राइव करने का बड़ा चाव था और वह रशीद को मजबूर करके मीलों दूर कश्मीर के रास्ते पर निकल जाती थी। चांदनी रात का वह दृश्य उसकी आंखों के सामने घूमने लगा जब चिनार की लम्बी परछाइयों के तले वह उसे अपनी गाड़ी में बैठाए न जाने किस मंज़िल की ओर उड़ा चला जा रहा था। उस रात सलमा की जुल्फें इसी प्रकार उड़-उड़कर उसके चेहरे को छू रही थीं और उनकी सुगंध सारे वातावरण को विभोर-सा कर रही थी। प्रति-क्षण दोनों की कामनाएं तरुण और सांसें तेज़ हुई जा रही थीं। इस उमड़ते हुए भावों के तूफ़ान को नियन्त्रित करने के लिए सलमा ने एक प्यार भरा गीत छेड़ दिया था।

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