ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
|
5 पाठकों को प्रिय 363 पाठक हैं |
सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
रशीद उस मधुर गीत की कल्पना में खोया हुआ आगे बढ़ता जा रहा था कि अचानक एक मोड़ से एक ट्रक उसके सामने आ गया। ट्रक की तेज रोशनी और चिरमिराती ब्रेकों की चीख़ ने उसे कंपकंपा दिया। लेकिन वह जल्दी ही संभल गया और उसने गाड़ी को सड़क से नीचे उतार दिया। अनायास उसके थरथराते होंठों से 'सलमा' का नाम निकल गया।
एक चीख़ के साथ पूनम ने अपने आपको संभाला और फिर धुंधली रोशनी में ध्यान से रशीद के चेहरे को देखने लगी। उसके माथे पर पसीने की बूंदें उभर आई थीं। वह अब तक अपनी घबराहट पर नियन्त्रण न पा सका था। पूनम ने दाएं-बाएं झांककर देखा। जीप डल झील के बिलकुल किनारे एक पेड़ के तने के साथ रुकी खड़ी थी। कुछ देर तक दोनों पर एक अजीब कंपकंपी-सी छाई रही...फिर पूनम ने कांपते स्वर में पूछा-''क्या हुआ?''
''कुछ नहीं...। न जाने किस धुन में ड्राइव कर रहा था। ट्रक की ओर ध्यान ही नहीं गया।''
''लेकिन सलमा कहकर किसे पुकार रहे थे?'' पूनम ने सन्देहमयी दृष्टि से उसे देखते हुए पूछा।
''सलमा रशीद की पत्नी है।'' रशीद ने झट कहा और पूनम के चेहरे पर आई लटें हटाता हुआ बोला-''वही दोस्त, जिसने मुझे अपनी जीप में बार्डर तक पहुंचाया था। तब सलमा भी उसके साथ थी।''
''वह रशीद, जिसने आपकी सुरक्षा के लिए वह लाकिट दिया था?''
''हां, वही...'उस दिन भी एक ऐसी ही घटना होते-होते रह गई थी और मैं चीख पड़ा था-'सलमा'। आज भी अनायास उसी का नाम जबान पर आ गया। तुम्हें बुरा लगा क्या?''
''नहीं तो...।'' पूनम ने हिचकिचाते हुए कहा और फिर क्षण भर रुक कर बोली-''मैंने आपसे वह लाकिट ले लिया था। शायद इसी कारण यह दुर्घटना हो गई। लीजिए, इसे आप दोबारा पहन लीजिए।'' यह कहते हुए पूनम ने अपने गले से लाकिट उतार कर रशीद के गले में डाल दिया।
रशीद जो अभी तक यादों के सागर से निकल न पाया था, जंजीर से लटके लाकिट को हाथ में थाम कर अचानक कांप उठा। लाकिट में 'अल्लाह' के स्थान पर 'ओम्' का शब्द जगमगा रहा था। लाकिट में किए गए इस परिवर्तन से उसका अंतर जल उठा था। वह अभी यह निश्चय ही नहीं कर पाया था कि पूनम की इस हरकत पर उसे क्या कहे कि वह स्वयं ही मुस्करा कर बोल उठी- ''घबराइए नहीं...जंजीर वही है...मैंने केवल 'अल्लाह' को पिघला कर 'ओम्' करवा लिया है।''
|