ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
तभी अर्दली ने आकर गुरनाम को बताया कि उसके स्नान के लिए पानी तैयार है। गुरनाम ने जल्दी-जल्दी लंबे घूंट लेकर चाय की प्याली खाली कर दी और एक डकार लेते हुए बोला-''लेकिन पार्टी में एक बात का ध्यान रहे रणजीत।''
''क्या?''
''लोगों से मेरा परिचय कराते समय यही बताना कि मैं छुट्टी पर हूं...ड्यूटी पर नहीं।''
''अबे, तो क्या अपनी तरह मुझे भी बुद्धू समझता है?''
''नहीं यार...सावधानी के लिए कहरहा था। क्या करें ड्यूटी ही ऐसी है। तेरे यहां तो मैं दोस्ती निभाने के लिए आ गया, वर्ना मुझे होटल में ठहरने का आर्डर है।''
रशीद कुछ सोचने लगा। फिर कुछ देर मौन रहकर सरसरी ढंग से गुरनाम से पूछ बैठा-
''तुम्हें यहां रहकर करना क्या होगा?''
''लोगों से मेल-जोल बढ़ाना...भारतीय अफ़सरों और यू० एन० ओ० के पर्यवेक्षकों पर दृष्टि रखना।''
''इससे क्या मिलेगा?''
''उस 'रिंग' का पता, जो दुश्मनों के लिए कश्मीर में जासूसी कर रहा है।''
''कोई सुराग तो मिला होगा?''
''केवल इतना कि उस रिंग का कोड नंबर है-'555'।'' गुरनाम ने बहुत धीरे से कहा और अपना साफ़ा खोलता हुआ गुसलघर की ओर चला गया।
''पांच सौ पचपन'' का नंबर सुनकर रशीद के मस्तिष्क को जैसे बिजली का झटका लगा और वह कुछ क्षण के लिए स्थिर-सा रह गया। उसे यों अनुभव हुआ, जैसे किसी भयानक शक्ति ने उसे जकड़ लिया हो और वह कोशिश करने पर भी उसकी पकड़ से निकल न पा रहा हो।
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