ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
11
आफ़िसर्स मैस में कर्नल चौधरी को दी जाने वाली विदाई की पार्टी पूरे यौवन पर थी। व्हिस्की और कोल्ड ड्रिंक्स के गिलास लोगों के हाथों में चमक रहे थे। अफ़सरों की पत्नियां और कुछ अतिथि रमणियां महफ़िल की शोभा को चार चांद लगा रही थीं। पश्चिमी संगीत की धीमी मधुर ध्वनि हाल में गूंज रही थी। इसके साथ लोगों की बातचीत और ठहाके तथा गिलासों की खनक एक अनोखा समां उत्पन्न कर रही थी।
रशीद गुरनाम को साथ लिए हुए सभी अफ़सरों से उसका परिचय करा रहा था और गुरनाम हर मिलने वाले के साथ अपना गिलास टकराकर पीता जा रहा था। अब तक वह काफी शराब पी चुका था और थोड़ा बहकने भी लगा था। रशीद ने उसे संभालकर साथ ले जाकर कोने में रखे एक सोफे पर बिठा दिया और बैरे को ताकीद कर दी कि उसका ध्यान रखे।
इस बीच रशीद की दृष्टि बार-बार मुख्य प्रवेश-द्वार की ओर जाती और निराश लौट आती। उसे पूनम की प्रतीक्षा थी जो अभी तक नहीं आई थी। कर्नल चौधरी ने उसकी व्याकुलता को अनुभव करते हुए पूछा-''क्या बात है कैप्टन?''
''कुछ नहीं सर।''
''ज़रूर कोई बात है...मैं देख रहा हूं, तुम पार्टी एंज्वाय नहीं कर रहे हो।''
''यह बात नहीं सर...मुझे वास्तव में अपनी फ़ियांसी की प्रतीक्षा है। वह पार्टी में आने वाली थी।''
''तो यंगमैन, जाओ उसे उठा लाओ।''
''नहीं सर...वह आप ही आ जाएगी।''
''डोंट बी क्रूवल टु लव। (Don't be cruel to love) जाओ...ले आओ।'' कर्नल ने उसका कंधा थपथपाते हुए कहा।
''कुछ देर और प्रतीक्षा करता हूं...नहीं आई तो चला जाऊंगा।'' रशीद ने कर्नल के हाथ से खाली गिलास लेकर भरा हुआ गिलास उसे देते हुए कहा।
कर्नल चौधरी ने चमकती हुई आंखों से उसे घूरते हुए़ पूछा- ''तुम्हारा गिलास कहां है?''
''आज नाग़ा है सर...मंगल का व्रत है मेरा!''
''ओह...आई सी...लेकिन तुम कब से रिलीजियस (religious) बन गए?''
''जब से पाकिस्तान से लौटा हूं। क़ैद के एकाकीपन ने भगवान के निकट कर दिया है सर।''
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