ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''तुझसे किसने कहा?''
''तेरी मां की चिट्ठी ने। तेरा पता उसी से तो मंगवाया था।''
''हां गुरनाम...छुट्टी न मिल सकी। अगले महीने जाऊंगा।''
''छुट्टी नहीं मिली...।'' गुरनाम ने उसकी नक़ल उतारते हुए व्यंग से कहा-''अच्छा बहाना गढ़ा है। अबे तू कैसा बेटा है, जो अभी तक मां से नहीं मिला-जा, मैं तुझसे नहीं बोलता।''
''नहीं गुरनाम...तू मेरी मज़बूरी को नहीं समझता।''
''खूब समझता हूं। प्रेमिका से मिलने में कोई मज़बूरी नहीं थी।'' गुरनाम ने कटाक्ष किया।
''अरे भई, मैं उससे मिलने कहां गया था...वह स्वयं ही यहां आई।'' रशीद ने अपनी सफ़ाई देते हुए कहा।
''पूनम यहां चली आई!'' गुरनाम ने मुस्कराते हुए पूछा-''सच कह रहा है तू?'' उसके स्वर से लगता था कि उसे दोस्त की बात का विश्वास नहीं आ रहा था।
''क्यों? इसमें आश्चर्य की क्या बात है?''
''आश्चर्य नहीं दोस्त...तेरे सौभाग्य पर ईर्ष्या कर रहा हूं। तुझे अपना वचन निभाने का अवसर आप ही मिल गया।''
''कैसा वचन?''
''यही कि लड़ाई समाप्त हो जाने पर इन्हीं वादियों में उसके साथ दस दिन बिता सकेगा।''
''ओह...तो अब तक याद है तुझे वह बात?''
''हां दोस्त...उस वचन के बाद पूनम ने जो कुछ कहा था उसी आवाज को तू सिगरेट लाइटर में सुन-सुनकर आप जीता था और हम सबको सुनाकर बोर करता था।''
''वह कल जा रही है।''
''क्या, पूनम अभी तक यहीं है?'' गुरनाम उछल पड़ा।
''हां...और आज पार्टी में भी आ रही है।''
''ओह, तब तो हम भी दर्शन कर लेंगे।''
''लेकिन देखना कोई अशिष्टता...।''
''अरे जा...हमें शिष्टता सिखाता है।'' गुरनाम ने उसकी बात काट दी और फिर बोला-''अरे, हम तुम्हारे साथ कैसा भी व्यवहार कर लें, लेकिन औरतों की हमेशा इज्ज़त करते हैं।''
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