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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''कहां?'' वह बौखला सा गया और चाय की प्याली उसके हाथों से गिरते-गिरते बची।

''घबराओ नहीं...वह दिल्ली नहीं बाज़ार गई है, शापिंग के लिए।'' आंटी उसकी बौखलाहट पर हंसते हुए बोलीं।

''आपने तो मुझे डरा ही दिया था।'' रशीद झेंप गया और फिर जल्दी-जल्दी चाय के घूंट भरते हुए पूछ बैठा-''कब तक लौटेंगी?''

दोपहर तक। वास्तव में हम लोग कल दिल्ली जा रहे हैं, इस-लिए आज का दिन पूनम ने शापिंग के लिए रखा है।''

''लेकिन...यह इतनी जल्दी लौटने का प्रोग्राम कैसे बन गया?''

''पूनम के डैडी का तार आया है। उनकी तबीयत कुछ अच्छी नहीं है।''

रशीद चुप हो गया। आंटी ने आमलेट की प्लेट उसके आगे बढ़ाकर प्लेट में थोड़ी सॉस उड़ेल दी। रशीद कुछ सोचता हुआ चुपचाप खाने लगा। चाय की दूसरी प्याली बनाकर उसके सामने रखते हुए आंटी ने अनुभव किया कि पूनम के घर में न होने से वह कुछ बुझ-सा गया था। उसका दिल बहलाने के लिए आंटी ने इधर-उधर की कई बातें की, किंतु रशीद कुछ खोया-सा ही रहा। नाश्ता कर चुकने के बाद वह उठ खड़ा हुआ और जाने की आज्ञा चाही।

''पूनम की प्रतीक्षा न करोगे?'' आंटी ने उसे रुकने का आग्रह करते हुए कहा।

''मैं उसे रास्ते ही में मिल लूंगा।''

''रास्ते में उसे-कहां ढूढोगे?''

''श्रीनगर का बाज़ार तो चौक के आस-पास ही है... वहीं ढूंढ लूंगा। क्या खरीदने गई है वह?''

''यही कुछ अखरोट की लकड़ी का सामान, कुछ कपड़े और ड्राई फ्रूट्स।''

''तब तो वह ज़रूर मिल जाएगी।'' रशीद ने आंटी का धन्यवाद किया। और कष्ट के लिए क्षमा मांगकर बाहर निकल आया।

श्रीनगर की प्राय: सभी बड़ी दूकानें चौक के इर्द-गिर्द ही हैं। दस-बारह दूकानों में घूमने से ही श्रीनगर आए हुए सभी लोग मिल सकते हैं। रशीद भी चौक में आकर पूनम को इन्हीं दूकानों में ढूंढने लगा।

कपूर सिल्क स्टोर के काउंटर पर रेशमी साड़ियों का एक ढेर लगा था और वहां का सेल्समैन हर साड़ी की प्रशंसा में ज़मीन-आसमान के कुलाबे मिला रहा था लेकिन पूनम का दिल किसी साड़ी पर न ठहर रहा था।

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