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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''कुछ भी हो, जाड़े का अपना अलग ही मज़ा होता है।''

रशीद की बात सुनकर आंटी ने लपककर अलमारी से बादाम, किशमिश और चिलग़ोज़ों की प्लेट निकाली और रशीद की ओर बढ़ाती हुई बोलीं-''लो...थोड़ा सूखा मेवा खाओ। मैं अभी नाश्ता तैयार करके लाती हूं।''

''आप क्यों कष्ट कर रही हैं...कश्मीरी बना लेगा।''

''नहीं बेटा, यह कैसे हो सकता है। अभी तो तुम कह रहे थे, आंटी के हाथ का बना नाश्ता खाओगे।''

रशीद मुस्करा कर चुप हो गया। जब आंटी अंदर चली गईं तो सूखे मेवे खाता हुआ वह थोड़-थोड़े समय बाद दाएं-बाएं ताक-झांक करने लगा कि शायद पूनम कहीं दिखाई दे जाए। वास्तव में आंटी को किचन में भेजने का उसका यही उद्देश्य था कि पूनम से अकेले में बातें करने का अवसर मिल जाएगा। लेकिन पूनम ने तो जैसे बाहर न आने की सौगन्ध खा रखी थी। उसकी प्रतीक्षा में रशीद बादाम की गिरियां और किशमिश खाता रहा।

जब बहुत देर तक पूनम बाहर न आई तो वह समझ गया कि रात उसके न आने के कारण वह उससे रूठी हुई है और शायद अंदर बैठी उसके धैर्य की परीक्षा ले रही है। रशीद ने भी ठान लिया कि आज वह यहीं डटा रहेगा। आंटी के हाथ का बना नाश्ता खाएगा...लंच करेगा और फिर डिनर! वह देखेगा कि कब तक पूनम उससे रूठी रहती है।

थोड़ी देर में कमला आंटी एक ट्रे उठाए हुए आ पहुंची और वहीं अंगीठी के सामने तिपाई खिसकाकर रशीद के आगे अंडों से तैयार किया हुआ नाश्ता और ढेर सारे फल रख दिए। उनके पीछे चाय की ट्रे उठाए कश्मीरी अंदर आया और उसने चाय तिपाई पर टिका दी।

नाश्ता आ जाने पर रशीद दाएं-बाएं झांकता हुआ कुछ बेचैन दिखाई देने लगा। आंटी उसके सामने बैठती हुई बोलीं-''क्या सोच रहे हो? नाश्ता ठंडा हो रहा है।''

यह कहकर वह चाय की प्याली में चीनी डालकर चाय उंड़लने लगीं। रशीद कुछ खिसियाता हुआ बोला-''ओह! तो क्या मुझे अकेले ही खाना होगा? आप नाश्ता न करेंगी?''

''नहीं, आज मेरा मंगल का उपवास है।'' आंटी ने चाय की प्याली उसे थमाते हुरा कहा।

''लेकिन पूनम तो साथ दे सकती है।'' रशीद ने अपनी उत्सुकता व्यक्त कर ही दी।

''ज़रूर साथ देती, लेकिन वह तो चली गई।''

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