ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
10
पूनम की आंटी ने ज्यों ही धुली हुई साड़ी, सुबह की चमकती धूप में रस्सी पर फैलाई, वह अपने सामने किसी अजनबी को देखकर एकाएक ठिठक गई। फ़ौजी वर्दी पहने हुए उस अजनबी को पहचानने में उन्हें ज़रा भी देर न लगी। उनकी भांजी पूनम के मंगेतर रणजीत के सिवाय यह नौजवान अफ़सर और कौन हो सकता था। उसका स्वागत करने के लिए अभी वह उपयुक्त शब्द खोज ही रही थी कि रशीद ने हाथ जोड़कर मुस्कराते हुए स्वयं अपना परिचय दिया।
''आंटी नमस्ते...मैं रणजीत हूं।''
''आओ-आओ...मैं पहचान गई हूं। आज सुबह ही सुबह कैसे आ गए?''
''कल रात की गुस्ताखी के लिए माफ़ी मांगने आया हूं आपसे।''
''अरे माफ़ी कैसी...मैं तो समझ गई थी कि किसी ज़रूरी काम में उलझ गये होगे...फ़ौज की ड्यूटी कब आ पड़े, कौन जानता है।''
''लेकिन, मेरे अर्दली ने बताया था कि आप मुझसे नाराज़ हैं। आप समझती हैं, मैं आपके सामने नहीं आना चाहता।''
''नहीं बेटा...वह तो यों ही पूनम बिगड़ बैठी थी तो उसका गुस्सा ठंडा करने के लिए कह दिया था। आओ...अंदर आ जाओ यहां क्यों खड़े हो गए।''
यह कहकर आंटी सिर को आंचल से ढकते हुए रशीद को लेकर कमरे में चली आई।
रशीद बड़ी घनिष्टता से कुर्सी खींचकर जलती हुई अंगीठी के सामने बैठ गया। उसके बैठते ही आंटी ने पूछा- ''क्या लोगे...चाय या काफी?''
''चाय तो लूंगा ही, लेकिन खाली नहीं, कुछ नाश्ते के साथ।''
''हां-हां, क्यों नहीं।'' आंटी खुश होती हुई बोलीं-''लगता है, आज तुम्हें अवकाश है।'' फिर उन्होंने ऊंची आवाज़ से अपने कश्मीरी नौकर को पुकारा। जिसका नाम भी कश्मीरी था।
रशीद ने इधर-उधर झांक कर पूनम की आहट लेना चाही और आंटी से बोला-''आंटी... आज पूरे दिन की छुट्टी ले रखी है। सोचा, आपका गिला मिटा डालूं। आप ही के हाथों बना नाश्ता खाऊं, इसीलिए सवेरे आ गया।''
तभी कश्मीरी अंदर आया और आंटी ने उसे प्याज़ काटकर अंडे फेंटने का आदेश दिया और कहा कि नाश्ता वह स्वयं आकर तैयार करेंगी। रशीद आंटी की ओर देखकर मुस्कराया और अंगीठी में जलती हुई लकड़ियां ठीक करता हुआ बोला-''बाहर तो गजब की ठंडक है।''
''धूप निकलने के बाद यहां प्राय:हवाओं में शीत बढ़ जाती है।''
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