ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
फिर अचानक उसे एक सफ़ेद सिल्क की साड़ी पसंद आ गई, जिसपर नीले रंग के रेशम से कढ़ाई की गई थी। यह अपने ढंग की एक ही साड़ी थी। पूनम को वह साड़ी टटोलते देखकर सेल्समैन पूनम की मनोदशा को ताड़ गया और बढ़ा-चढ़ाकर उस साड़ी की प्रशंसा करने लगा। पूनम ने बिना उसकी ओर देखे हुए पूछा- ''क्या दाम है इसका?''
''चार सौ चालीस, मेम साहब।'' सेल्समैन ने उत्तर दिया।
''चार सौ चालीस! बहुत मंहगी है।'' अनायास पूनम के मुंह से निकला।
उसने साड़ी वहीं छोड़ दी और जाने के लिए पलटी। इससे पहले कि सेल्समैन ग्राहक को रिझाने का आखिरी प्रयास करता, एक आवाज़ ने पूनम के क़दमों को जैसे वहीं रोक दिया।
''यह साड़ी पैक कर दो।''
यह आवाज़ रशीद की थी, जो पूनम को खोजते-खोजते यहां तक चला आया था। अचानक उसे वहां देखकर पूनम चकित रह गई। सेल्समैन ने दोनों की दृष्टि में कुछ उखड़ापन सा पाकर रशीद को याद दिलाने के लिए साड़ी की कीमत दोहराई-''हां-हां भई सुन लिया-चार सौ चालीस। कहा न पैक कर दो।'' रशीद ने बिना उसकी ओर देखे हुए कहा।
''लेकिन मुझे यह साड़ी नहीं चाहिए।'' पूनम जल्दी से बोली।
''पर मुझे यह साड़ी चाहिए।'' रशीद ने अपने हाथ में पकड़ी छड़ी को उंगलियों से नचाते हुए कहा और फिर सेल्समैन से सम्बोधित होकर बोला-''हरी अप।''
सेल्समन ने झट साड़ी पैक कर दी और बिल काटकर रशीद को थमा दिया। पूनम अभी तक चुप खड़ी थी। रशीद को बिल चुकाते देखकर वह कंधे झटककर दूकान से बाहर जाने लगी।
''पूनम...!'' रशीद ने लपककर उसका रास्ता रोक लिया।
''क्या है?'' पूनम ने रुखाई से पीछे देखते हुए पूछा।
''मुझे मां के लिए एक शाल और साड़ी लेनी है।'' रशीद ने नम्रता से कहा।
''तो ले लीजिए।''
''मां की पसंद क्या है, उसे क्या अच्छा लगेगा...तुम ही बता सकती हो।'' यह कहता हुआ रशीद काउंटर की ओर मुड़ा और यों ही नीले रंग की एक साड़ी को छूता हुआ बोला-''यह रंग कैसा लगेगा मां को?''
''यह भी कोई रंग है उनके पहनने का?'' वह तुनककर बोली।
''तो यह कैसा रहेगा?'' उसने एक गुलाबी रंग की साड़ी को हाथ लगाते हुए पछा।
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