ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
कहवा पीकर जब दोनों मकान के अन्दर गए तो वहां एक अजीब दृश्य दिखाई दिया। एक अधेड़ उम्र का स्वस्थ पीर चटाई पर गाव तकिया लगाए बैठा था। लम्बे खिचड़ी बाल और दाढ़ी तथा बड़ी-बड़ी लाल आंखों से उसका विशेष व्यक्तित्व झलक रहा था। उसके सामने मिट्टी के दो बड़े प्यालों में लौहबान सुलग रहा था और दाईं ओर एक बड़े बालों वाली पहाड़ी बकरी बंधी थी। हर आने वाले श्रद्धालु का पहला काम यह होता कि पास रखी टोकरी में से एक मुट्ठी घास लेकर बकरी को खिलाता। अगर बकरी घास खा लेती तो बाबा उसे बैठने का संकेत कर देते। परन्तु यदि बकरी घास न खाती तो बाबा क्रोध भरी आंखों से उस आदमी को देखते और वह घबराकर बाहर चला जाता।
तभी एक बूढ़ी औरत दाखिल हुई। उसने टोकरी से मुट्ठी भर घास लेकर बकरी की ओर बढ़ाई। बकरी ने घास खाने की बजाय उछलकर बुढ़िया को टक्कर मारना चाही। बाबा का चेहरा सहसा गुस्से से लाल हो गया और उन्होंने बुढ़िया के मुंह पर थूक दिया। रशीद बाबा की इस घृणित हरकत पर कुछ कहना ही चाहता था रुख़साना ने झट उसे चुप रहने का संकेत कर दिया।
रुख़साना और रशीद ने भी आगे बढ़कर बकरी को घास खिलाई। सौभाग्य से बकरी ने उनकी घास खा ली और दोनों पीर बाबा के पांव के पास जा बैठे।
कुछ देर तक आंखें बन्द किए, बाबा अंतरध्यान रहे। फिर अचानक आंखें खोलकर उन्होंने कागज का एक पुर्ज़ा उठाकर उस पर पेंसिल से कुछ लिखा और वह पुर्ज़ा रुख़साना की ओर फेंककर फिर आंखें बंद कर लीं। रुख़साना ने वह पुर्ज़ा उठाया और बाबा के पांव छूकर रशीद के साथ बाहर चली आई।
बाहर दरवाज़े पर एक आदमी बैठा पुर्ज़े पढ़कर लोगों को बारी-बारी से बाबा की लिखी बात का मतलब समझा रहा था। जब रुख़साना ने अपना कागज पढ़वाने के लिए उसे दिया तो उसने कागज़ पढ़कर एक गहरी दृष्टि उन दोनों पर डाली और फिर दरवाज़े के पास अंदर ही एक अंधेरी गुफा की ओर संकेत करके उनसे बोला-''तुम्हें अंदर जाने का हुक्म है बाबा का।''
''वहां तो अंधेरा है।'' रशीद ने चौंककर कहा।
''हां...इसी अंधेरे ग़ार में तुम्हें जाना है। वहां बाबा की धुनी जल रही है। उस धुनी से राख़ लेकर माथे से लगाकर ग़ार के दूसरे सिरे से बाहर निकल जाओ। जाओ...तुम्हारी हर मुश्किल आसान हो जाएगी। इसी अंधेरे में तुम्हारी तक़दीर का उजाला फूटेगा।''
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