ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
रशीद और रुख़साना जब उस गुफा में प्रविष्ट हुए तो चारों ओर घोर अंधेरा था। रशीद एक स्थान पर लड़खड़ाने लगा तो रुख़साना ने तुरंत सहारा देकर उसे संभाल लिया। थोड़ी दूर आगे, एक बड़ी सी देग में धुनी जल रही थी। रुख़साना और रशीद ने उसमें से चुटकी भर राख उठाई और माथे पर लगा ली।
तभी अंधेरे में एक ओर जुगनू सा क्षणिक जलता-बुझता प्रकाश दिखाई दिया। रुख़साना ने इस सिगनल को समझ लिया और रशीद को लेकर उस ओर बढ़ी। यहां गुफा काफ़ी चौड़ी थी। आगे सीढ़ियां थी। दो एक सीढ़ियां उतरकर उन्हें एक छोटा सा बल्ब जलता दिखाई दिया। यहां से सीढ़ियां मुड़ गई थीं। कुछ देर इन्हीं सीढ़ियों से सावधानीपूर्वक चलने के बाद वे एक तहख़ाने में पहुंच गए।
उनके तहख़ाने में पहुंचते ही 'चट' की हल्की-सी आवाज़ सुनाई दी और तहख़ाने में प्रकाश हो गया। वे एक बड़े से कमरे में खड़े थे। अभी रशीद इस तहख़ाने को देख ही रहा था कि जान उनके सामने आ खड़ा हुआ। जान ने मुस्कराकर रशीद का स्वागत किया और दोनों को साथ लेकर उसी दरवाज़े में लौट गया जिससे अभी-अभी वह बाहर आया था। उनके दाख़िल होते ही वह दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया और अब वे उस ट्रांसमीटर रूम में थे जो 555 का अड्डा था।
रशीद ने ध्यान से इस गुप्त अड्डे को देखा। जान के अतिरिक्त वहां दो बुर्कापोश लड़कियां और थीं। जान ने मेजर रशीद से उनका परिचय कराया-''रज़िया और परवीन...हमारे अड्डे की बेहतरीन वर्कर्श... दिन भर पीर साहब की ख़िदमत करती हैं और रात में इस अड्डे की इंचार्ज।''
''कहीं किसी को इस अड्डे पर शक न हो जाए। यहां बहुत भीड़ जमा रहती है।'' रशीद ने क़ुछ सोचते हुए कहा।
''नामुमकिन...।'' जान झट बोल उठा। पीर बाबा को ये लोग खुदा का भेजा हुआ फरिश्ता समझते हैं। उन पर किसी ने शक की नज़र भी डाली तो लोग एक हंगामा खड़ा कर देंगे।''
''लेकिन खुद पीर साहब तो भरोसे के आदमी हैं न?''
''मुल्क और क़ौम के सच्चे जांनिसार...आज़ाद कश्मीर फ़ौज के पुराने अफ़सर हैं। गोली लगने से एक टांग बेकार हो गई तो हमारी खिदमत करने यहां चले आए।'' रुख़साना ने पीर साहब का परिचय देते हुए रशीद से कहा।
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