ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
पास खड़े लोग एकाएक उनकी ओर दौड़े और सबने देवी माता का धन्यवाद किया, जो पूनम जलने से बच गई थी। अगर देवी कृपा से रशीद झट दोपट्टे को खींच न लेता तो लौ उसके नायलन के कपड़ों को पकड़ लेती। पुजारी ने जल्दी से रशीद के हाथों पर गर्म-गर्म तेल लगा दिया और फिर देवी की भभूत लेकर उसपर छिड़कता हुआ बोला-''जाओ...देवी माता की कृपा हो गई...न जाने कौन सा संकट आकर टल गया।''
जब रशीद और पूनम देवी के मंदिर से लौट रहे थे, तब एक अनोखे मौन ने दोनों को घेर रखा था। पूनम के मस्तिष्क पर बार-बार पुजारी का यह वाक्य हथौड़े की-सी चोट लगा रहा था...''जाओ देवी की कृपा हो गई...न जाने कौन सा संकट आकर टल गया।''
''क्या सोच रही हो?'' रशीद ने इस लम्बे मौन को तोड़ते हुए पूछा।
''यही...कहीं देवी माता मुझसे अप्रसन्न तो नहीं।''
''वह क्यों अप्रसन्न होने लगीं?''
''आपको जबरदस्ती जो यहां खींच लाई।''
''नहीं पूनम...अगर हमारी निष्ठा पर देवी को ज़रा भी संदेह होता तो मैं तुम्हें इस आग से न बचा पाता।''
पूनम ने सजल नेत्रों से रशीद की ओर देखा। रशीद मुस्करा रहा था। इस मुस्कराहट में प्रेम का ऐसा विश्वास था, जिसने पूनम के मन की सब शंकाओं को मिटा दिया...और दोनों चुपचाप सीढ़ियों से नीचे उतरने लगे।
शंख और घंटियों की आवाज़ मंदिर में अब भी गूंज रही थी।
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