ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''ओह...रणजीत...अब इंकार न करो। जानते हो, मैंने मनौती मान रखी थी।''
''क्या?''
''जब आप सकुशल लौट आएंगे, तो मैं आपको साथ लेकर देवी की आरती उतारूंगी। आज देवी ने मेरी प्रार्थना सुन ली है। उसका आदर करने न चलोगे मेरे साथ? जानते हो, मैं कश्मीर में मनोरंजन करने के लिए नहीं आई...मनौती पूरी करने आई हूं।''
रशीद अब इंकार न कर सका और पूनम के साथ क़दम उठाता हुआ सीढ़ियां चढ़ने लगा। जैसे-जैसे वह सीढ़ियां चढ़ता जा रहा था, उसका साहस बढ़ता जा रहा था। मंदिर के शंख और घंटियों की आवाज़ ने उस पर जादू का-सा असर किया। वह थोड़ी देर के लिए भूल गया कि उसका मजहब क्या है, वह कौन है और किस उद्देश्य से यहां आया है।
क्षण भर बाद, वे दोनों देवी के मंदिर में थे। पूनम रशीद को देवी के सामने ले आई। दोनों हाथ जोड़कर खड़े हो गये। रशीद ने अपने चेहरे पर ऐसी नम्रता ले आया, मानो वह बड़ी श्रद्धा से प्रार्थना कर रहा हो। लेकिन वास्तव में वह कनखियों से, दूसरे पूजा करने वालों को देख रहा था कि उससे पूजा में कोई भूल न हो जाए। जिससे पूनम उस पर संदेह करने लगे। जब उसने पूजा करने का ढंग भलीभांति समझ लिया, तो उसने इस सुन्दरता से पूजा का अभिनय किया कि किसी को भ्रम भी न हुआ कि वह मुसलमान है। देवी के चरणों में माथा टेकते ही उसका मन ज़रूर कांप उठा कि वह अपनी आत्मा और अपने खुदा को धोखा दे रहा है। लेकिन इसके अतिरिक्त और कोई चारा भी तो नहीं था।
चरण-वंदना के बाद दोनों ने सिर उठाया तो पुजारी ने आगे बढ़कर उनके मस्तक पर टीका लगाया और चरणामृत दिया। पूनम बड़ी श्रद्धा से, आंखें बन्द करके, चरणामृत पी गई। लेकिन रशीद को विवशत: उसे गले में उड़ेलना पड़ा।
चरणामृत लेकर पूनम एक बार फिर देवी के चरण-स्पर्श के लिए झुकी तो अकस्मात उसके रेशमी दोपट्टे का पल्लू देवी के चरणों में जलते हुए दीपक की लौ से छू गया और उसे पता नहीं चला। क्षण भर में ही दोपट्टे ने आंच पकड़ ली। रशीद ने एका-एक उसे अपनी ओर घसीट लिया और जब तक पूनम कुछ समझ पाती, उसने उसका दोपट्टा खींचकर, फैलते हुई आग को अपने दोनों हाथों से मसल कर बुझा दिया।
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