ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''सुबह यूनिफ़ार्म में नहीं, सिविल कपड़ों में आइयेगा।''
रशीद की समझ में नहीं आया कि पूनम ने उसे सुबह सिविल ड्रेस में क्यों बुलाया है। इसी पहेली को सोचता हुआ वह जीप लेकर चला गया। पूनम देर तक वहीं खड़ी दूर जाती गाड़ी की बैक लाइट्स देखती रही।
दूसरे दिन सुबह वचन के अनुसार रशीद पूनम के यहां जा पहुंचा। वह उसी की प्रतीक्षा कर रहीँ थी। उसके आते ही, वह फूलों टोकरी लेकर जीप में आ बैठी और बोली-''चलिए।''
''मगर कहां लिए जा रही हो मुझे। मैं बहुत जरूरी मीटिंग छोड़कर आया हूं।'' रशीद ठिठकते हुए बोला।
''मेरा काम आपकी मीटिंग से भी ज़रूरी है। बस, एक घंटे में छुट्टी दे दूंगी आपको...चलिए तो।''
रशीद ने जीप गाड़ी आगे बढ़ा दी। रास्ते में उसने कई बार पूनम से पूछा कि वह उसे कहां लिवाये जा रही है, लेकिन पूनम का एक ही उत्तर था-''बस, अभी मालूम हो जाएगा।''
रशीद को लिए वह एक पहाड़ी के आंचल में पहुंची और उसने रशीद को वहीं जीप रोक देने के लिए कहा। रशीद गाड़ी रोककर पहाड़ी को देखने लगा। वहां से ऊपर सीढ़ियां चली गई थीं। सोच भी नहीं पाया था कि यह कौन-सा स्थान हो सकता है, इतने में पूनम बोल उठी-''चलिये न, खड़े क्या देख रहे हैं?''
''कहां?'' रशीद ने प्रश्नसूचक दृष्टि से उसे देखते हुए पूछा।
''देवी के मंदिर में!''
मंदिर का नाम सुनते ही रशीद के बदन का लहू सूख गया। यह जासूसी उसे बहुत महंगी पड़ रही थी। पहले उसे शराब पीनी पड़ी...वह एक गुनाह था। लेकिन बुत-परस्ती (मूर्ति-पूजा) तो उसके मज़हब को ले डूबेगी। यह खुला कुफ्र था...। उसका जी चाहा कि वह पूनम का हाथ झटक कर भाग जाए। लेकिन फिर... फिर क्या होगा? क्या उसे मुल्क़ और क़ौम के लिए यह कुफ्र...।
''क्या सोच रहे हैं आप?'' रशीद को एक उलझन में खड़े देख कर पूनम ने पूछा।
''तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया। यहां तो काफ़ी देर हो जाएगी।''
''मंदिर की ऊंचाई देखकर न घबराइये। हम अभी, गए और अभी आए।''
''क्यों न इसे कल पर रखें?''
''देवी के द्वार आकर लौट जाना चाहते हैं, बड़ा पाप लगेगा।''
''लेकिन पूनम...।''
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