ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''ओ...माई गाड! कितनी दिलफ़रेव शाम...और इतनी रूखी-बोरिंग बातें'' रुख़साना ने झुंझला कर जान को टोका और फिर पूनम को अपनी ओर खींचती हुई बोली-''आओ...लेट्स गो टु द व्ल्यू रूम।''
''लेकिन वहां...।'' पूनम घबराई।
''अरे क्या गज़ब का नाच हो रहा है...कितनी दिलफ़रेब मौसीकी है।''
पूनम ने घबराइए हुई नज़रों से रशीद की ओर देखा। रशीद ने उसे जाने का संकेत करते हुए रुख़साना से कहा-''हां-हां चलो...हम भी तुम्हारा साथ देंगे।''
चारों एक दूसरे का हाथ थामे ब्ल्यू रूम की ओर चल दिए।
थोडी ही देर की भेंट में पूनम रुख़साना और जान से घुल-मिल गई। उनकी संगत उसे काफ़ी दिलचस्प लगी। जान और रुख़साना रशीद और पूनम बहुत देर तक ब्ल्यू रूम के संगीत पर नाचते रहे। जब नाच समाप्त हुआ तो रुख़साना और जान के आग्रह पर उनके साथ खाने के लिए भी उन्हें रुकना पड़ा। रशीद यही चाहता था कि अधिक समय पूनम रुख़साना के साथ ही रहे ताकि वह उसके टेढ़े-मेढ़े प्रश्नों से बच जाए।
रात के इस हंगामे के बाद मैस लौटते हुए रशीद ने पूनम को उसकी लाज के बाहर छोड़ दिया। पूनम ने उसे कहा कि वह क्षण-भर रुककर आंटी से मिलता जाए, लकिन रशीद ने रात के ग्यारह बजे की मीटिंग में सम्मिलित होने का बहाना बनाकर टाल दिया। पूनम ने गाड़ी से उतरकर उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए पूछा-''फिर कब मिलोगे?''
''कल शाम...!''
''शाम को नहीं...सुबह।''
''क्यों?''
''एक बहुत ही जरूरी काम है आपसे।''
''क्या?'' रशीद ने कुछ संदेह से देखते हुए पूछा।
''यह सवेरे ही बताऊंगी।''
''फिर भी...?''
''कहा न, कल ही बताऊंगी...हर बात का कारण नहीं पूछते। जो कहूं, मान जाइये।''
रशीद मौन हो गया। उसने विवशत: 'हां' के संकेत में गर्दन झुका दी और जाने के लिए गाड़ी का इंजन स्टार्ट कर दिया। पूनम नेँ फिर उसे हाथ के संकेत से रोकते हुए कहा।
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