ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''अपनी महबूबा से।'' रशीद ने भी मुस्कराकर उत्तर दिया।
''अपनी या रणजीत की?'' पूछते हुए रुख़साना की शोख़ी कुछ और बढ़ गई।
रशीद अचानक गम्भीर हो गया और उसे चेतावनी देता हुआ बोला...''बेहतर होगा रुख़साना, अगर आप इन दो नामों को ज्यादा न दोहराएं।''
''सॉरी सर...मैं तो यह कहना चाहती थी कि आपकी महबूबा कहीं वह तो नहीं।'' रुख़साना ने एक ओर संकेत किया।
रशीद ने घूमकर उधर देखा। उनसे हट कर, लोगों से अलग-थलग एक मेज़ पर अकेली एह सुन्दर लड़की बैठी उन्हीं की ओर देख रहा थी।
रुख़साना का अनुमान ठीक ही था। वह सचमुच पूनम ही थी जो न जाने कब से वहां आकर बैठी थी। रशीद उसे देखते ही रुख़साना से बोला-''आपका अंदाज़ा ठीक है।''
पूनम को देखकर रशीद की बेचैनी कम हो गई। उसने रुख़साना से नज़र मिलाई और उसकी आंखों में चंचल मुस्कराहट देखकर कुछ झेंप गया। जान ने झट कहा-''जाइए...मिल लीजिए अपनी प्रेमिका से।''
रशीद ने उठने से पहले रुख़साना से पूछा-''आप पूनम को जानती हैं?''
''नहीं तो।''
''फिर आपने कैसे जाना, वही मेरी महबूबा है?''
''उसकी चाल देखकर। जब मैं आपसे मिलने के लिए बढ़ी तो यह लड़की इधर आते-आते रुक गई थी। मुझे देखकर वह ठिठकी और फिर पलटकर उस कोने में कुर्सी पर जा बैठी। मेरा अनुमान था कि वह आपको जानती है और मेरा आपके गाल को चूमना उसे अच्छा नहीं लगा, इसलिए...।''
''ओ रुख़ी डीयर...'' जान उसकी बात काटते हुए बोला-''क्यों इनका टाइम वेस्ट कर रही हो। जाने दो न!''
रशीद अपने स्थान से उठा और पूनम से मिलने के लिए उसकी और बढ़ा। पूनम ने उसे अपनी ओर आते देखा तो मुंह फेर कर उस फ़व्वारे को देखने लगी, जिसका चमकता पानी रंगीन बल्बों के प्रकाश में सुन्दर समां बांधे हुए था।
रशीद तेज़ क़दमों से चलता हुआ उसके पास पहुंचा और उसकी कुर्सी के पीछे खड़ा होकर प्यार से बोला-''पूनम...।''
पूनम ने पलटकर गम्भीरता से उसकी ओर देरवा, लेकिन कुछ बोली नहीं।
''तुम कब आई?'' रशीद ने उसके साथ वाली कुर्सी पर बैठते हुए कहा।
''जब आपको देखने की फुर्सत मिल गई।'' पूनम कुछ रुखाई से बोली।
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