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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

रशीद ने संतोष की सांस ली और तीनों एक साथ कुर्सियों पर बैठ गए। तभी बैरा बीयर की बोतलें और दो बड़े जार ले आया रुख़साना ने बोतल उठाई और ढक्कन खोलकर दोनों गिलासों में बीयर उड़ेलती हुई रशीद से बोली-''आप शौक नहीं फ़र्माते?''

''जी नहीं।''

''लेकिन शाहबाज़ तो कहता था, आपने उस रात पी थी।''

''वह मज़बूरी थी।''

''और आज अगर हम मजबूर करें तो?'' उसने दोनों गिलास भरते हुए पूछा।

''जी नहीं...शुक्रिया। किसी के शौक पर मैं अपने उसूलों को कुर्बान नहीं कर सकता।''

''ओ० के...मैं आपके उसूलों की कद्र करती हूं। चीयर्ज़...।''

यह कहते हुए रुख़साना ने अपना गिलास जान के गिलास से टकराया। और धीरे-धीरे चुस्कियां भरने लगी।

रशीद अब इस लड़की की घनिष्टता से ऊबने लगा था। उसकी आंखें फिर प्रवेश-द्वार पर जम गईं।...पूनम अभी तक क्यों नहीं आई? प्रति क्षण उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उसके मस्तिष्क में कई शंकाएं उठने लगी थीं। व्याकुलता से वह कुर्सी पर दाएं-बाएं पहलू बदलने लगा।

''आपकी तबियत तो ठीक है न मेजर?'' रुख़साना ने उसकी बेचैनी अनुभव करते हुए पूछा।

''हां...हां...मैं बिल्कुल ठीक हूं।'' रशीद ने संभलते हुए उत्तर दिया।

''नहीं...लगता है, आप हमसे कुछ छिपा रहे हैं। अथवा आपको हमारी कंपनी पसंद नहीं। या आप किसी और से मिलने के लिए बेकरार हैं।'' रुख़साना ने बेधड़क कहा।

रशीद ने देखा, ज्यों-ज्यों वह बीयर के घूंट गले से उतारती जाती थी, उसके चेहरे पर चंचलता बढ़ती जा रही थी। वह इस छोटो-सी भेंट में ही रवुल गई थी। रशीद अधिक देर तक उसकी चंचल नशीली आंखों का सामना नहीं कर सका और अपनी दृष्टि झुकाते हुए बोला-''यू आर राइट रुख़साना।''

''रुख़साना नहीं, रुख़ी डीयर।'' जान ने बीयर का चटकारा लेते हुए अपनी महबूबा का प्यार का नाम दोहराया।

''हां तो बताइए, किससे मिलने के लिए बेकरार हैं आप?'' रुख़साना ने मुस्कराते हुए रशीद को फिर छेड़ा।

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