ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
|
5 पाठकों को प्रिय 363 पाठक हैं |
सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''वह जानती हैं, मैं यहां हूं?''
''हां...इसीलिए तो पापा को मनाकर मुझे साथ लेकर यहां आई हैं।''
''पापा अब कैसे हैं?''
''दो-चार दिन ठीक रहते हैं, फिर वही दौरा...फिर ठीक...यही चक्कर रहता है। समझ में नहीं आता, क्या करना चाहिए।''
''मेरी मानो तो उन्हें कुछ दिन के लिए किसी हिल-स्टेशन पर ले जाओ।'' रशीद ने कहा।
''असंभव! वे तो एक दिन के लिए भी इस घर को नहीं छोड़ना चाहते।''
''दैट्स बैड लक...अच्छा पूनम, अब मैं चलता हूं।''
''अरे वाह...'' पूनम ने उसका हाथ पकड़ लिया-''ये क्या, अभी आए, और अभी चल दिए। आंटी से नहीं मिलोगे?''
''फिर मिल लूंगा। असल में आज मुझे कमांडिंग आफ़िसर से मिलना है। अभी लंच से पहले वक़्त लिया है।''
''फिर कब मिलेंगे?''
''जब तुम चाहो।''
''कल शाम...?''
''ओ० के० लेकिन अबकी बार तुम्हें आना होगा।''
''कहां?''
''ओबेराय पैलेस होटल...शाम से रात के खाने तक तुम्हें मेरे साथ रहना होगा। जी भरकर बातें करेंगे।''
पूनम ने स्वीकृति में गर्दन हिला दी। इससे पहले कि रशीद उससे जाने के लिए अनुमति लेकर उठ खड़ा होता, नौकर गरम-गरम काफी के दो प्याले ले आया। रशुदि पूनम की आंटी की वापसी से पहले ही वहां से खिसक जाना चाहता था, लेकिन पूनम के आग्रह पर काफी का प्याला लेकर पीने लगा।
जल्दी-जल्दी काफी के घूंट गले के नीचे उतारकर रशीद ने पूनम से विदाई ली और फिर टैक्सी की ओर बढ़ा। दरवाज़े में खड़ी पूनम एकटक उसे देखने लगी। रणजीत की चाल में थोड़ी कंपन थी। पूनम को कुछ आश्चर्य हुआ, फिर न जाने क्या सोचकर वह मुस्करा दी।
नौकर को काफी के खाली प्याले थमाकर ज्यों ही उसने फ़र्श पर पड़े उस अधूरे बुने हुए स्वेटर को बुनने के लिए उठाया उसकी दृष्टि उन सूखे पत्तों के बीच जमकंर रह गई, जहां कुछ देर पहले उसका रणजीत खड़ा था। पत्तों में आधी छिपी, कुछ सुनहरी चीज़ चमक रही थी। पूनम ने झुककर देखा, एक लाकिट था, जिस पर उर्दू में 'अल्लाह' खुदा हुआ था। पूनम आश्चर्य चकित उसे उठाकर देखने लगी। लेकिन इससे पहले कि वह लपककर रशीद से इस बारे में कुछ पूछती, रशीद की टैक्सी वहां से दूर जा चुकी थी।
यह लाकिट पूनम के लिए एक पहेली बनकर रह गया।
|