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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''तब तो मेरे, न जाने से निराश हुई होंगी।''

''नहीं, बल्कि मुझे सांत्वना देती रहीं। किसी सरकारी काम में उलझ गया होगा मेरा बेटा...। आपने चिट्ठी तो लिख दी होगी?'' पूनम ने रशीद का हाथ थामते हुए उसकी आंखों में झांका।

पल भर के लिए फिर रशीद का दिल कांपा, लेकिन फिर उसने झट कहा-''नहीं पूनम! कुछ ऐसी व्यस्तता थी कि चिट्ठी भी नहीं लिख पाया। जब जाना होगा, तार दे दूंगा। अभी तो कुछ दिन छुट्टी मिलनी मुश्किल है।''

''क्यों? मैंने तो सुना है, जंगी क़ैदियों को लौट आने पर जल्दी छुट्टी मिल जाती है।''

''हां पूनम, तुमने ठीक सुना है। लेकिन मेरा केस कुछ अलग है।''

''वह क्यों?''

''अगले हफ्ते यहां यू० एन० ओ० और हमारे कुछ बड़े अफ़सरों की एक मीटिंग होने वाली है, जिसमें कुछ जंगी क़ैदियों से पूछताछ करेंगे। मुझे भी इसीलिए रोक लिया है।''

''कहीं टाल तो नहीं रहे?'' पूनम ने मुस्कराकर पूछा।

''मैं भला ऐसा क्यों करूंगा? और फिर एक वचन भी तो दिया था।''

''क्या?''

''लड़ाई समाप्त होने पर दस दिन की छुट्टी लेकर हम एक साथ कश्मीर की-सुन्दर वादियों में रहेंगे।''

''ओह! तो याद है, वह वचन आपको?''

''इसी वचन को निभाने के लिए तो सुरक्षित, जीता-जागता तुम्हारे सामने आ गया, वर्ना जाने कब किस दुश्मन की गोली का निशाना बन जाता।''

पूनम ने झट अपना हाथ रशीद के होंठों पर रख दिया और बोली-''उई राम...कैसी बात जबान पर लाते हैं!''

पूनम की ठंडी उंगलियों ने रशीद के गर्म होंठों को छुआ ही था कि उसके सारे शरीर में एक बिजली की-सी लहर दौड़ गई। एक कंपन-सी उसके बदन में हुई और एकटक वह उसे देखने लगा।

फिर जल्दी ही उसने अपने भावों को नियंत्रित किया और बात बदलने के लिए पूछ बैठा-

''तुम्हारी आंटी कहां हैं?''

''बाजार तक गई हैं...अभी लौट आएंगी।''

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