ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
रशीद ने कांपते होंठों से पूनम का नाम दोहराया...एक बार फिर उस संक्षिप्त सन्देश को पढ़ा। उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा। पूनम के साथ रूमान के विचार से नहीं, बल्कि इस कड़ी परीक्षा से...। सैनिक जीवन में उसने बड़ी-बड़ी विपदाओं का सामना किया था, किन्तु रणजीत की पूनम से मिलने की कल्पना से ही उसके हाथ-पांव कांपने लगे थे। डर इस बात का था कि कहीं इस प्रेम के नाटक में वह पकड़ा न जाए। अगर पूनम को आभास भी हो गया कि वह उसके रणजीत का डुप्लीकेट है, तो उसकी सारी योजना पर पानी फिर जाएगा।
तभी किसी आहट ने उसे चौंका दिया और वह उछलकर अपनी जगह पर घूम गया। सामने उसका नौकर रसूल खड़ा था। रशीद के हाथों में फूलों का गुलदस्ता देखकर वह लड़खड़ाते हुए बोला-''साहब...वह आई थीं...आपसे मिलने।''
''कौन?''
''एक लड़की।''
''कुछ कह भी गई है?''
''काफ़ी देर तक बैठी इंतज़ार करती रहीं...मैंने चाय के लिए पूछा, लेकिन इंकार कर दिया। बस, यह पत्र और फूल छोड़कर चली गईं।''
''ठीक है...जाओ, जल्दी से एक कप काफ़ी बना लाओ।''
''अभी लाया हुजूर!'' यह कहते ही रसूल बाहर निकल गया।
रशीद ने उन फूलों को सूंघा और सामने रखे फूलदान में लगा दिया। उसने वर्दी का कोट उतारकर कुर्सी पर फेंका। सहसा कोट की जेब में से रणजीत वाला लाइटर निकलकर फ़र्श पर गिर पड़ा। इसी लाइटर में पूनम की आवाज़ भरी हुई थी। रशीद ने झुक कर लाइटर उठा लिया और उसे जला कर पूनम की रिकार्डेड आवाज़ सुनने लगा। वह कह रही थी-
''तुम जा रहे हो रणजीत...मुझे प्रतीक्षा का लम्बा समय देकर...लेकिन याद रखना, इस समय का हर क्षण मुझे प्रिय होगा। क्योंकि इन क्षणों में मेरा मन अपने प्रियतम के प्यार की माला जपेगा। मुझे विश्वास है कि तुम सकुशल लौट आओगे...और जब लौटोगे, तो मुझे अपनी प्रतीक्षा में आंखें बिछाए पाओगे।''
उस रात न जाने कितनी बार रशीद ने बिस्तर पर लेटे-लेटे पूनम की आवाज़ को सुना। लेकिन जब भी वह इस अजनबी लड़की की कल्पना करता, सलमा का चेहरा उभर कर उसके सामने आ जाता। वह सलमा जो सीमा पार उसकी याद में खोई, उसकी कुशलता की दुआएं मांग रही होगी।
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