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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

रशीद झट उचककर ड्राइवर के साथ वाली सीट पर आ बैठा। ड्राइवर ने गाड़ी चला दी और धीमे स्वर में बोला-''आपके आने से पहले हमें हिदायत मिल गई थी कि आप पहुंचने वाले हैं और आपकी हर मुमकिन मदद की जाए।''

''यहां पर एक्स 555 का इंचार्ज़ कौन है?'' रशीद ने कुछ सोचते हुए पूछा।

''आपको हर रात होटल ओबेराय पैलेस में मिल सकता है।''

''नाम...?''

''जान मिल्ज...एंगलो इंडियन है...और उसके साथ एक लड़की रहती है रुखसाना, जिससे वह शादी करने वाला है।''

''तुम्हारा नाम और ठिकाना।''

''शाहबाज़...मेजर सिंधु का ड्राइवर।''

थोड़ी ही देर में गाड़ी वहां पहुंच गई, जहां रशीद रहता था। उसके नीचे उतरने से पहले ड्राइवर ने दबी आवाज़ में कहा-''इस वक्त तो आपको बस यही इतला देनी थी कि किसी भी मदद की ज़रूरत हो तो हम हाज़िर हैं, खिदमत के लिए।''

रशीद ने हां में गर्दन हिला दी और गाड़ी से नीचे उतर गया। शाहबाज़ ने तुरंत गाड़ी स्टार्ट कर दी और रशीद कुछ देर वहीं खड़ा जीप को अंधेरे में गुम होता देखता रहा।

जान मिल्ज़ और रुखसाना का नाम मन में दोहराता हुआ रशीद अपने कमरे में दाखिल हुआ। वह अर्दली को पुकारते हुए आगे बढ़ा, परंतु एकाएक चौंककर वह वहीं खड़ा हो गया। सामने मेज पर ताज़ा गुलाब के फूलों का बड़ा-सा गुलदस्ता रखा था। रशीद धीरे-धीरे मेज़ के पास आया और ध्यानपूर्वक गुलदस्ते को देखने लगा। फूलों के साथ एक-कागज का पुर्ज़ा पड़ा था। रशीद पुर्ज़ा खोलकर पढ़ने लगा।

''मेरे रणजीत...!

तुम सकुशल लौट आए, यों लगा, जैसे मेरे जीवन में बहार लौट आई।

मैं आज ही कमला आंटी के साथ कश्मीर आई थी और आते ही तुमसे मिलने आ गई, लेकिन पता चला, तुम मैस में हो और बहुत देर बाद लौटोगे। कल तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी...चश्मा शाही के नम्बर चार टूरिस्ट लॉज़ में...सुबह दस से बारह बजे तक।''

तुम्हारी

'पूनम'

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