ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
वह बोलती रही और रशीद प्यार भरी दृष्टि से उसे निहारता रहा।
''क्यों...विश्वास नहीं आया क्या?'' पूनम उसकी आंखों में देखती हुई पूछ बैठी।
''नहीं पूनम...मैंने कई बार सचमुच तुम्हें अपने बहुत निकट अनुभव किया था...बहुत ही निकट। और शायद यही कारण था कि दुश्मन की कठोर क़ैद को मैं खुशी से झेल गया। तुम्हीं ने मुझे इस योग्य बना दिया था कि हर कष्ट सरल हो गया। कोई दुख-दर्द न रहा।''
''लाओ...तुम्हारे वे दुख-दर्द मैं अपने सीने में भर लूं...भूल जाओ अपने जीवन की सारी कड़वाहटें...देखो... मैंने तुम्हारी उन अंधेरी राहों में दीपक जला दिये हैं...पुरानी सब बातें भूल जाओ''
कहते-कहते पूनम ने अपना सिर रशीद के सीने पर रख दिया और हल्की-हल्की सिसकियां लेकर उसकी बांहों में मचलने लगी। रशीद ने अवसर से लाभ उठाया और पूनम की उभरी हुई भावनाओं का वैसे ही उत्तर देने लगा। उसने धीरे-धीरे पूनम की पीठ को सहलाना आरम्भ कर दिया। पूनम की व्याकुलता बढ़ने लगी और वह उसकी छाती से अपना चेहरा रगड़ने लगी। रशीद ध्यानपूर्वक उसके दिल की धड़कनों को सुनने लगा...उसके गदराए हुए वक्ष का स्पर्श और बालों की भीनी-भीनी सुगंध उसे दीवाना बना दे रही थी...उस पर एक पागलपन-सा सवार होने लगा और वह अनायास पूनम से लिपट गया...
''नहीं, पूनम नहीं...यह धोखेबाज़, कपटी है। यह तुम्हारा प्रेमी नहीं...पूनम यह तुम्हारा रणजीत नहीं।''
एक चीख के साथ रणजीत की आंखें खुल गईं। वह फ़र्श पर बिछी चटाई पर लेटा था...। उसने यह भयानक सपना देखा था और वह आंखें फाड़े शून्य में देख रहा था उसकी चीख़ सुनकर पाकिस्तानी सन्तरी उसकी कोठरी तक आया और सीकचों के बाहर से बोला, ''क्या शोर मचा रखा है?''
''कुछ नहीं...मैं एक डरावना सपना देख रहा था।'' रणजीत ने हांफते हुए कहा।
''सिपाही होकर सपनों से डरते हो? ऊंह...यह भारत का वीर सिपाही है।'' सन्तरी ने व्यंग से कहा और मुंह में ही कुछ बड़-बड़ाता हुआ वहां से चला गया।
रणजीत ने अंधेरे में उसे ग़ायब होते देखा। उसकी सांस अभी तक फूली हुई थी। दिल धड़क रहा था और बदन पसीने से तर था। जैसे मीलों यात्रा तय करके आ रहा हो।
श्रीनगर के आफ़िसर्स मैस में रणजीत के क़ैद से सकुशल लौट आने की खुशी में आज एक विशेष पार्टी का प्रबंध किया गया था। स्टेशन कमांडर और अन्य स्थानीय यूनिटों के कई अफ़सर भी इस पार्टी में आमंत्रित थे। कुछ सुंदर रमणियां भी जगमगाती साड़ियां पहने, कश्मीरी शालें ओढ़े, पार्टी की शोभा बढ़ा रही थीं। कुछ यू०एन०ओ० के प्रेक्षक अफ़सर भी आमंत्रित थे। रशीद कैप्टन रणजीत का रूप धारण किए बड़ी योग्यता से अफ़सरों से घुल-मिलकर बातें कर रहा था।
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