ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
|
5 पाठकों को प्रिय 363 पाठक हैं |
सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
पाकिस्तानी क़ैद से आज़ाद हो जाएगा और अपने देश में पहुंचकर रशीद को पकड़वा देगा...कितना बड़ा छल किया था इन लोगों ने उससे...उसके बाद भी क़ैदियों के तीन जत्थे जा चुके थे लेकिन वह कोठरी में पड़ा सड रहा था और व्यर्थ प्रतीक्षा कर रहा था कि उसे भिजवा दिया जाएगा...। लेकिन अब...अब स्वतंत्रता ता उसके सामने है...बस दो क़दम और...
और फिर, उसने अपना सिर सुरंग से बाहर निकाला ही था कि उसे अपने पास ही सुरंग के मुंह पर चार-छ: भारी फ़ौजी बूट दिखाई दिए...तभी एकाएक कई हाथ एक साथ उसकी गर्दन पर पड़े और गंदी गालियों की बौछार के साथ उसे घसीटकर सुरंग से बाहर निकाल लिया गया।
''तुमने मेरे हमशकल को मेरे स्थान पर हिंदुस्तान भेजकर मेरे वतन को धोखा दिया है...मेरी मां से...मेरे दोस्तों से और मेरी मुहब्बत से छल किया है...वह सबको धोखा देगा...इतना बड़ा फ़रेब...भाई के बहाने घर बुलाकर उसने मुझे धोखा दिया...मेरा हर भेद ले लिया...मैं...मैं उसे मार डालूंगा...मार डालूंगा उसे।''
''रणजीत 'सैल' के बाहर खड़े पाकिस्तानी अफ़सरों को चिनगारियां उगलती आंखों से देखता हुआ, पागलों की भांति चिल्लाए जा रहा था। अफ़सर मुस्करा-मुस्कराकर उसके पागलपन का आनंद उठा रहे थे।''
''घबराओ नहीं...'' एक पाकिस्तानी अफ़सर व्यंग से बोला-''अभी डॉक्टर आता ही होगा...तुम्हारा मिज़ाज ठीक कर दिया जाएगा।''
उसी समय एक सिपाही डॉक्टर को लेकर वहां पहुंच गया वही व्यंग उड़ाने वाला अफ़सर डॉक्टर से बोला-''डॉक्टर...आज इसका पागलपन कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है...कमबख्त ने चीख़-चीख़कर नाक में दम कर रखा है...कोई ऐसा इंजेक्शन दीजिए कि दो-चार दिन के लिए तो फुर्सत मिल जाए।''
''यस...यस...'' कहते हुए डॉक्टर ने बैग से सिरिंज निकाली और उसमें दवाई भरकर पास खड़े हुए सिपाहियों से कहा-''जरा मजबूती से पकड़ लो इसे।''
''पकड़ने की क्या ज़रूरत है...।'' रणजीत ने आगे बढ़ते हुए सिपाहियों को हाथ के संकेत से रोकते हुए कहा-''तुम मुझे बेहोश ही करना चाहते हो न...लो कर दो बेहोश। लेकिन याद रखो यों तुम मेरे बदन को बेकाबू कर दोगे लेकिन मेरी आत्मा को नहीं सुला सकोगे...कभी न सुला सकोगे।''
यह कहते हुए रणजीत ने अपनी बांह डॉक्टर के सामने कर दी। डॉक्टर ने तेजी से दवाई का भरा सिरिंज उसकी बांह में खुबो दिया...फिर सिरिंज निकालकर उसकी बांह को मलता हुआ-''शाबाश...लेट जाओ।''
|