ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
थोड़ी देर में वे ट्रांजिट कैम्प में पहुंच गए। एक-आध रात शायद उन्हें यहीं रहना था। रशीद रिसेप्शन टैंट में एक कुर्सी पर बैठा विचारों में खोया हुआ था। वह इस बात से अनभिज्ञ था कि टैंट के दूसरे सिरे पर कोई बैठा ध्यान से उसे देख रहा था। सहसा दोनों की दृष्टि टकराई और रशीद अनायास ही मुस्करा पड़ा। इतने में कैंम्प का एक कर्मचारी रशीद को उसका टैंट दिखाने अपने साथ ले गया। रशीद ने अल्लाह का शुक्र मनाया कि उन तेज निगाहों से बसे छुटकारा मिला।
अभी वह अपने टैंट में अपना सामान जमा भी नहीं पाया था कि वही आदमी फिर उसके सामने आ खड़ा हुआ और घूर-घूर कर देखने लगा। मेजर रशीद मन ही मन कांप उठा कि शायद उसका भेद खुल गया है। तभी वह आदमी मूंछों पर ताव देता हुआ आगे बढ़ा और बोला-''ओ रणजीत...यह तुझे क्या हो गया है? पागलों की तरह मेरा मुंह देखे जा रहा है...अपने दोस्त कैप्टन गुरनाम सिंह को भूल गया क्या?''
''नहीं तो...'' रशीद ने कहा और बड़े तपाक से गुरनाम की ओर बढ़ा और फिर उससे लिपट गया।
गुरनाम उसे लिपटाए हुए भावुकता से बोला-''तू भी मुझे कैसे पहचानता...मैं बदल जो गया हूं...बीमारी से दुबला हो गया हूं।''
''हां, मैं तो आपको देखकर चकरा ही गया था। अच्छा हुआ जो आपने मुझे पहचान लिया।'' रशीद ने हिचकिचाते हुए कहा।
''यह आप जनाब क्या करने लगा है तू...पाकिस्तान में रहकर लखनवी बन गया है क्या।'' गुरनाम ने आश्चर्य से कहा।
''हां यार...कुछ ज़बान ही बिगड़ गई है...तू को आप कहने लगा हूं।''
''चल कोई बात नहीं...हम तेरी आप को फिर तू मैं बदल देंगे।'' गुरनाम ने मुस्कराकर कहा और फिर रशीद के पास बैठता हुआ बोला-''लेकिन यार इतना बुझा हुआ क्यों है? पहले तो सदा फुलझड़ियां छोड़ा करता था?''
''हां गुरनाम, क़ैद की घुटन में आदतें बदल जाती हैं।''
''लेकिन दिल नहीं बदलता।''
''दिल कैसे बदल सकता है...दोस्तों की हमदर्दी और प्यार इतनी जल्दी थोड़े ही भुलाया जा सकता है।''
''पूनम तो बहुत याद आती होगी?'' गुरनाम ने मुस्कराकर पूछा।
पूनम का नामसुनकर रशीद ने चौंककर गुरनाम की ओर देखा। वह अभी सोच ही रहा था कि क्या उत्तर दे कि गुरनाम कह उठा-''कोई पैगाम, संदेशा भेजा था उसे?''
''हां गुरनाम, रेडियो पर उसे और मां को संदेश दिया था कि मैं जिन्दा हूं तशवीश न करें।''
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