ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''अरे तशवीश क्या? तू तो पक्का पाकिस्तानी बन गया है।''
रशीद ने फिर चौंककर उसे देखा और कुछ सोचकर झट बोला-''अरे हां चिन्ता...। तुम जानते हो यहां भी मैं अच्छी उर्दू बोल लेता था।''
''खूब जानता हूं उर्दू शायरी से तुम्हारी रुचि। क्या ग़ज़लें सुनाते थे मैस में।''
रशीद ने मन-ही-मन सोचा कि उसे बोल-चाल की ज़बान के बारे में सावधान रहना चाहिए। इतनी हिन्दुस्तानी तो आती ही है उसे। पूनम के बारे में कुछ और सूचना लेने के लिये उसने फिर कहा-''पूनम की याद के सहारे तो इतने दिन जी लिया हूं।''
''याद है, जब आखिरी बार वह तुम्हें श्रीनगर हवाई अड्डे पर मिली थी तो तुमने कोई वचन दिया था उसको?'' गुरनाम की आंखों में एक चमक थी।
''कैसा वचन?'' उसके मुंह से निकल गया और वह अपनी इस जल्दबाज़ी पर मन-ही-मन पछताने लगा।
''अरे भूल गया...यही कि जब लड़ाई समाप्त हो जाएगी तो तू दस दिन की छुट्टी लेकर इन्हीं सुन्दर वादियों में उसके क़दमों में पड़ा रहेगा।''
''गुरनाम...वचन तो हमने अपने देश से भी बहुत किए थे, पर निभा न सके। जंग में और फिर क़ैद में सब इश्क-विश्क भूल गए।''
''अरे छोड़ो, अब जंग की बातें बहुत हो चुकीं...क्या हमारी इतनी बड़ी कुर्बानी कम थी कि स्वयं गिरफ्तार हो गए, लेकिन वह फ़ोटो रील पाकिस्तानी फ़ौजियों के हाथ नहीं लगने दी।''
रशीद किसी फ़िल्म रील का जिक्र सुनकर चौकन्ना हो गया। अवश्य ही वह बड़े काम की फ़िल्म होगी। लेकिन ऐसा न हो कि गुरनाम किसी संदेह में पड़ जाए, इसलिए उसने गुरनाम को चुप हो जाने का संकेत किया और कृत्रिम ठहाका लगाते हुए बोला-''अब तूने भी जंग की बात छेड़ दी...चल प्यार की बातें करें। कुछ अपनी सुना, कुछ हमारी सुन।''
गुरनाम भी खिलखिलाकर हंस पड़ा और अपने साथ बीती घटनाएं उसे सुनाने लगा। रशीद ने कुछ मनगढंत बातें और कुछ रणजीत से सुनी बातें सुनाईं।
अचानक रशीद उसे एक किस्सा सुनाते-सुनाते चौंककर रुक गया। उसने देखा, गुरनाम ने अपने हैकर सैक में से एक रम की बोतल निकाली। उसे प्यार से चूमा और रशीद की ओर देखकर बोला-''इम्पोर्टेंड है।''
''लेकिन तुम्हें कहां से मिली?''
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