ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
रणजीत ने अपने एक मुसलमान साथी सूबेदार अली अहमद को भी इस भेद में शामिल कर लिया था। सूबेदार अहमद पक्का नमाज़ी था और इस कारण पाकिस्तानी कर्मचारियों में प्रिय बन गया था परन्तु उसके विचार हिंदुस्तानी थे। वह एक राष्ट्रवादी मुसलमान था। कैम्प के कुछ अफ़सर उसे काफ़िर मोमिन कहते थे। सूबेदार अली अहमद पांचों समय नियम से नमाज़ पढ़ता था। कैप्टन रणजीत के कहने से अब वह इस कोठरी के दरवाज़े के सामने नमाज़ पढ़ने लग गया था। जितनी देर तक वह नमाज़ पढ़ता रहता, गुसलखाने में कोई आदमी नहाने के बहाने सुरंग खोदता रहता। पाकिस्तानी संतरी कभी नमाज़ में व्यवधान डालने का साहस नहीं करते।
जुहर की नमाज़ के समय रणजीत स्वयं गुसलखाने के टाइल्ज़ उखाड़ रहा था। ज़मीन खोदने के लिए उसे पूरा एक घंटा मिल गया। खुदाई के लिए कोई औज़ार तो उनके पास था नहीं। यह काम उन्होंने अपनी तामचीनी की प्लेटों के किनारों को तेज़ करके किया था। उनका एक साथी तो बग़ीचे से माली का खुरपा भी चुरा लाया था। ज़मीन खोदने में इससे उन्हें बहुत सहायता मिली।
अहमद ने इसी तरह असर की नमाज़ पढ़ी फिर मग़रब की और अशा की...और इस इबादत के साथ-साथ सुरंग तैयार होती रही...।
मिलिट्री ट्रक जंगी क़ैदियों को लिए हिंदुस्तान की सीमा की ओर तेजी से उड़ा जा रहा था। प्रति क्षण उन्हें अपने देश के निकट लिये जा रहा था। स्वतंत्र वातावरण में भारत माता के चरण स्पर्श करने, देश की मिट्टी की महक सूंघने के लिए वे व्याकुल थे, प्रियजनों से मिलने की उत्कंठा प्रति पल बढ़ती जा रही थी...उनके दिलों की धड़कनें तीव्र होती जा रही थीं। लेकिन जहां उन्हें स्वदेश लौटने की खुशी थी, वहां इस बात की चुभन भी थी कि वे विजयी सिपाही के रूप में नहीं लौट रहे थे...क़ैदी हो जाने का कलंक उनके माथे पर लगा हुआ था।
इन सब अफ़सरों में एक रशीद ही ऐसा था, जिसकी भावनाएं इनसे भिन्न थीं...गुज़रता हुआ हर क्षण उसे परीक्षा की पहली मंजिल के निकट लिए जा रहा था। वह मन ही मन अपने आपको इस परीक्षा के लिए तैयार कर रहा था। दूसरे क़ैदियों के चेहरे प्रसन्नता से खिलते जा रहे थे। रशीद ध्यानपूर्वक उन्हें देख रहा था और साथ-साथ अपने गम्भीर मुख पर प्रसन्नता का मुखौटा चढ़ाने का प्रयत्न कर रहा था। वे लोग मुस्कराकर आपस में बातें करते जा रहे थे। जब कोई अफ़सर उससे बात करने लगता तो वह मुस्कारकर उंगली के संकेत से आगे बैठे पाकिस्तानी अफ़सर और ट्रक ड्राइवर की ओर संकेत करके होंठों पर उंगली रख लेता। उसके इस संकेत पर साथी अफ़सर चुप हो जाते।
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