ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
|
5 पाठकों को प्रिय 363 पाठक हैं |
सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
5
आज जंगी क़ैदियों का सातवां दस्ता हिन्दुस्तान वापस जा रहा था। जाने वाले क़ैदियों को उस ट्रक में बैठाया जा रहा था, जिसके द्वारा उन्हें सीमा तक पहुंचना था। सैनिकों को उनके निजी सामान भी लौटा दिए गए, जो उन्हें क़ैद करते समय ले लिये गये थे।
यह जे० सी० ओज़ और अफ़सरों का दस्ता था जिसमें कर्नल मजीद, मेजर करतार सिंह, कैप्टन ढिल्लो, सूबेदार मेजर डीसोज़ा और सूबेदार नारायण सिंह थापा तथा दूसरे अफ़सर सम्मिलित थे। कैप्टन रणजीत का नाम नहीं पुकारा गया, यद्यपि जाने वाले क़ैदियों की सूची में उसका नाम भी था। जैसे ही ट्रक कैम्प से निकला, पाकिस्तानी अफ़सरों ने उन्हें सहर्ष विदा किया। ट्रक धूल उड़ाता हुआ वाघा बार्डर की ओर रवाना हो गया। पांच-छ: मील का फ़ासला तय कर लेने के बाद ट्रक एक चेकपोस्ट पर रुक गया। यहां क़ैदियों को चाय दी गई।
ट्रक रुकने के थोड़ी देर बाद ही एक जीप गाड़ी, कैप्टन रणजीत को लेकर वहां आ पहुंची। उसे भी क़ैदियों वाले ट्रक में पहुंचा दिया गया। कैप्टन रणजीत को देखकर, उसके साथी क़ैदियों के चेहरे खुशी से खिल उठे। उसके अचानक साथ न आने से वे कुछ निराश हो गये थे। कैप्टन रणजीत ने बताया कि उसके काग़ज़ात अधूरे होने के कारण उसे अंतिम क्षण में रोक लिया गया था, लेकिन हैड क्वार्टर से शंका का समाधान हो जाने पर उसे फिर दस्ते में शामिल कर दिया गया। ट्रक की अगली सीट पर बैठा पाकिस्तानी अफ़सर ही केवल इस भेद को जानता था कि आने वाला नया अफ़सर कैप्टन रणजीत नहीं बल्कि मेजर रशीद था...।
उधर रणजीत के मस्तिष्क पर जैसे हथौड़े पड रहे थे।
पिछले कुछ दिनों से वह घर लौटने के निरंतर सपने देख रहा था। सुन्दर-सुन्दर कल्पनाओं में खोया रहता था। वह अपने देश पहुंचकर मां से मिलेगा...पूनम से मिलेगा...वे कितनी खुश होंगी, अब देर ही कितनी है...क़ैद और आज़ादी में बस एक ही रात का तो फ़ासला रह गया है। सुबह चलकर, शाम तक वह अपने देश के स्वतंत्र वातावरण में सांस ले सकेगा।
लेकिन शाम का खाना खाने के बाद ही उसके पेट में अचानक असीम पीड़ा उठी और वह तड़पने लगा...। उसे झट अस्पताल ले जाकर इंजेक्शन द्वारा बेहोश कर दिया गया। दोपहर को उसे कुछ होश आया। लेकिन अभी उसे यह अनुभव नहीं हो पाया था कि यह मामला क्या है...उसे केवल इतना याद था कि उसके पेट में अचानक ऐसी पीड़ा उठी थी, मानो कोई तेज छुरी उसकी अंतड़ियों को काटती हुई चली गई हो। अब पीड़ा उसके सिर में थी और मस्तिष्क में शून्यता-सी लग रही थी। उसने पास खड़े नर्सिंग अर्दली की ओर देखा और मुंह खोलकर पानी पिलाने का संकेत किया। उससे बोला नहीं जा रहा था। पानी के साथ उसे एक कैप्सूल दी गई और धीरे-धीरे फिर उसकी आंखें बन्दे होने लग गईं।
|