ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''अरे रे...यह क्या! खुदा के लिए नाश्ता कर लीजिए, भूखे पेट घर से नहीं जाते।''
''तो तुम्हें भी मेरे साथ खाना पड़ेगा।''
पति की हठ के सामने सलमा की एक न चली। उसने अनमने मन से मिठाई का एक टुकड़ा उठाकर उंगलियों में दबा लिया। लेकिन इससे पहले कि वह उसे होंठों तक ले जाती, रशीद ने एक, बड़ा-सा कबाब उठाया और उसके मुंह में ठूंस दिया। वह थोड़ा कसमसाई...लेकिन फिर ज्यों ही पति का हाथ गुदगुदी करने लिए उसकी ओर बढ़ा, वह खिलखिलाकर हंस पड़ी। यह सोचतक कि विदा होते समय उसके मन पर कोई बोझ न हो, वह नाश्ते के लिए उसके साथ ही बैठ गई।
नाश्ता कर चुकने के बाद रशीद ने बड़े प्यार से सलमा को देखा और हाथ से उसकी ठोड़ी को छूता हुआ बोला-''तों अब मैं जाऊं?''
''मैं आपको अपने फ़र्ज़ से कैसे रोक सकती हूं।''
''तो अलविदा न कहोगी...?'' उसने सलमा को अपने निकट खींचते हुए कहा।
'अलविदा' शब्द सुनकर, वह क्षण भर के लिए कंपकंपा गई फिर वह डरती हुई बोली-''नहीं...!''
''क्यों?'' मेजर रशीद ने आश्चर्य से पूछा।
''मुझे इस लफ्ज़ से नफ़रत है। इससे जुदाई की बू आती है अल्लाह करे, आप मुझसे कभी जुदा न हों। जाइए, खुदा आपको सलामत रखे।''
''अच्छा, खुदा हाफ़िज़।'' मेजर रशीद ने भावना को काबू में करते हुए पत्नी को भींचकर गले से लगाया और झटके से पलटकर तेज़ी से बाहर निकल गया।
सलमा एक फड़फड़ाते पक्षी के समान दरवाज़े तक आकर रुक गई। उसके होंठ कंपकंपा रहे थे और पलकों पर आंसू झिलमिला रहे थे।
कुछ ही क्षणों में उसके सरताज की जीप आंखों से ओझल हो गई तो उसे लगा, मानो ब्रह्माण्ड एकाएक स्थिर हो गया हो...सृष्टि की गति रुक गई हो।
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