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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

मेजर रशीद ने झपटकर उसे रोका और बोला-''देखो सलमा! इस बात का इल्म हम दोनों के सिवाय किसी और को नहीं होना चाहिए...मुझे परसों सुबह क़ैदियों के इसी जत्थे के साथ जाना होगा...मैं अभी नाश्ता करके कैम्प में लौट जाऊंगा और फिर वापस आने पर ही तुम्हें मिलूंगा।''

सलमा चुपचाप उसे देखती रही...वह उसके जाने की खबर सुनकर उदास हो गयी थी...उसकी आंखों की कोरों में आंसू झिलमिलाने लगे थे।

''अरे, रोने लगीं...तुम्हें तो हंसते हुए मुझे अलविदा कहना चाहिए।'' मेजर रशीद ने सलमा को आलिंगन में ले लिया।

''मैं अकेली कैसे रहूंगी?'' सलमा ने बुझे हुए मन से कहा।

''इसकी तुम फ़िक्र न करो...मैंने तुम्हारे अब्बाजान को खत लिख दिया है...वह कराची से आकर तुम्हें साथ ले जाएंगे। जब तक मैं वापस न लौटूं, तुम मायके ही में रहना।''

''जी नहीं...मैं कहीं नहीं जाऊंगी। अपने ही घर में रहकर आपकी वापसी का इंतज़ार करूंगी। आपकी याद मेरे साथ रहेगी। मेरे लिए यही काफी है।''

''ख़ैर, जैसा तुम मुनासिब समझो।'' मेजर रशीद ने सिगरेट का एक जोरदार कश लेते हए कहा...फिर सिगरेट को ऐश-ट्रे में बुझाकर खड़े होते हुए बोला-''मैं नहाने जाता हूं, तुम जल्दी से मेरे लिए नाश्ता तैयार कर दो।'' यह कहकर, वह बिना सलमा की ओर देखे ही जल्दी से बाथरूम में घुस गया। सलमा ने निराश दृष्टि से बाथरूम के बन्द होते हुए दरवाजे की ओर देखा और चिन्ता में डूबी, बोझिल क़दमों के साथ बाहर की ओर चली गई।

मेजर रशीद जाने की तैयारी पूरी करने के बाद खाने की मेज पर चला आया। उसके चेहरे पर गम्भीरता छाई हुई थी। खाने पर दृष्टि डालकर उसने पास खड़ी सलमा की ओर देखा, जो आंखें भुकाए हुए चुनरी का सिरा उंगलियों में मरोड़ रही थी। उसने बलपूर्वक मुस्कराने का प्रयत्न करते हुए सलमा सें कहा-''आओ, नाश्ता कर लें।''

''आप कीजिए...मैं बाद में कर लूंगी।'' सलमा ने बुझी, आवाज़ में कहा।

''क्यों?'' मेजर रशीद ने उसकी आंखों में देखते हुए पूछा।

''भूख नहीं है मुझे।''

''तो लो, मुझे भी भूख नहीं।'' यह कहते हुए वह एक झटके से कुर्सी छोड़कर खड़ा हो गया।

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