ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
"हाय अल्लाह! तो आपने मुझे बेवकूफ़ बनाने के लिए अपनी मूंछें साफ़ कर दीं?" सलमा ने झेंपते हुए कहा।
''तुम्हें नहीं...हिंदुस्तान को। और अब मुझे पूरा यक़ीन हो गया है कि जब मेरी बीवी मुझे नहीं पहचान सकी, तो हिंदुस्तान में भला मुझे कौन पहचानेगा। मेजर रशीद ने अपनी सफलता पर गर्व से छाती फुलाते हुए कहा।
''मैं समझी नहीं...रणजीत भाई कहां हैं?''
''उसे दोबारा क़ैदियों के कैम्प में पहुंचा दिया गया है।''
बात सलमा की समझ में आ गई, तो आश्चर्य से उसकी आंखें फट गईं। उसने कुछ अप्रसन्न दृष्टि से पति की ओर देखा और गम्भीर होकर बोली-''ओह! अब समझी आपके इरादे...तो आप इसीलिए उसे भाई बनाकर लाए थे...? आप उसकी आड़ में जासूसी करने हिंदुस्तान जाएंगे।''
''दैट इज़ करैक्ट...।'' मेजर रशीद ने मुस्कराकर कहा-''फ़ौजी अफ़सर की बीवी को इतना तो इण्टेलिजेण्ट होना ही चाहिए।''
''लेकिन यह तो धोखा हुआ।'' सलमा ने मुंह बनाकर कहा।
''मुहब्बत और जंग में सबकुछ जायज़ है।''
''लेकिन जंग तो खत्म हो चुकी है...।''
''नहीं...जंग ख़त्म नहीं हुई, रुक गई है। दुनियां की कोई जंग ख़त्म नहीं होती, रुक जाया करती है। दम लेने के लिए...दोबारा जंगी तैयारियां करने के लिए...और जब तक ये तैयारियां होती रहती हैं, गर्म जंग की जगह सर्द जंग होती रहती है। अब हिंदुस्तान से हमारी सर्द जंग शुरू होगी...और जब तैयारियां पूरी हो जाएंगी तो फिर गर्म जंग शुरू हो जाएगी।''
''और फिर खून की होली खेली जाएगी।'' सलमा ने दुखी और गम्भीर मन से कहा, ''हरे-भरे खेतों में आग लगाई जाएगी...इंसान शैतान बन जाएगा।''
''मैंने कहा न, मुहब्बत और जंग में सब कुछ जायज़ है...।'' मेजर रशीद ने त्यौरी चढ़ा कर कहा। फिर ऊंची आवाज़ में बोला, ''दुनियां में ज़लज़ले आते हैं, तो लाखों इंसान मर जाते हैं...तूफ़ान आते हैं तो सैकडों जहाज़ डूब जाते हैं...महामारियां फैलती हैं तो अनगिनत आदमी मौत केँ मुंह में चले जाते हैं...तो फिर अगर मुल्क़ की हिफ़ाज़त और कौम की सरबुलंदी की खातिर लाख-दो लाख जवान काम आ जाएं तो कौन सी बड़ी बात है। ऐसे मौक़ों पर अगर वतन के जवान हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें और तुम्हारी तरह अमन के राग अलापते रहें तो सारी दुनियां बुजदिल और नामर्द कहकर उनके मुंह पर थूकेगी।'' यह कहते हुए आवेश से मेजर रशीद का चेहरा लाल हो गया। सलमा ने पति की भावनाओं का विचार करते हुए विवाद करना उचित नहीं समझा और चुपचाप पलटकर अपने कमरे में जाने लगी।
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