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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''यह मैंने कब कहा?'' सलमा ने अपनी बात की व्याख्या करते हुए जल्दी से कहा-''फ़ौजी चाहे पाकिस्तानी हो या हिंदुस्तानी...मैं दोनों को एक जैसा ही समझती हूं। मेरे शौहर ने भी न जाने कितनी मांओं की कोख उजाड़ी होगी...कितनी सती-सावित्री औरतों की मांग का सिंदूर पोंछा होगा।''

''तब तो रशीद भाई से आपका अक्सर झगड़ा हो जाता होगा?'' रणजीत ने मुस्करा कर पूछा।

''ना बाबा...यह तो आपके सामने अपने दिल की भड़ास निकाल दी। वे होते तो अब तक जंग और अमन तथा वतनपरस्ती व कौमी खिदमत पर एक लम्बा-चौड़ा लेक्चर झाड़ दिये होते।...'अपने वतन के लिए हमें मर मिटना चाहिए। भारतीय लाहौर को फ़तह करने के ख़्वाब देखते हैं, तो हम दिल्ली के लाल किले पर अपना झंडा लहरायेंगे।' जब कौम और वतन पर वे बोलते हैं तो जोश से उनका चेहरा लाल भबूका हो जाता है, और मैं डर कर उनके सामने से भाग जाती हूं। एक बार तो ऐसी भागी कि ग़रारे के पायंचे में उलझकर गिर पड़ी...और वह ज़ोर से हंस पड़े।''

कैप्टन रणजीत अनायास ठहाके मारकर हंसने लगा और हंसते-हंसते दोहरा हो गया...फिर अचानक वह उसके पास आता हुआ प्यार से बोला-''कितनी प्यारी हो तुम सलमा...!''

सलमा को अचानक बिजली का-सा झटका लगा। उसने उसकी आंखों को पढ़ने का प्रयत्न किया और क्रोध-भरी निगाहों से रणजीत को देखने लगी।

''क्या बात है सलमा।'' कहता हुआ रणजीत फिर उसकी ओर बढ़ा।

''वहीं रुक जाइए रणजीत भाई।'' सलमा ने गरजकर कहा।

''बार-बार भाई मत कहो मुझे, वर्ना निकाह टूट जाएगा।'' रणजीत ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा-''मैं तुम्हारा भाई नहीं, शौहर हूं...मेजर रशीद।''

सलमा फटी-फटी आंखों से उसे देखने लगी। असीम आश्चर्य से अवाक् वह एकटक उसे तकती रह गई। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि वह व्यक्ति जिसे अब तक वह रणजीत समझकर बातें कर रही थी, असल में उसका पति मेजर रशीद है।

''यक़ीन नहीं आ रहा है क्या?'' मेजर रशीद ने मुस्कराते हुए पूछा।

''लेकिन आपकी मूंछें?'' असमंजस में वह बड़बड़ाई।

''यह है मेरी मूंछों का जनाज़ा...।'' मेजर रशीद ने मेज पर से अपनी मूंछों के बालों का गुच्छा उठाकर पत्नी को दिखाया और मुस्कराते हुए बोला-''अब तो यक़ीन आया तुम्हें?''

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