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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''वे बाथरूम में बहुत देर लगाते हैं...।'' सलमा ने टीकोज़ी एक ओर रख दी और कुछ रुककर बोली-''उनके लिए दुबारा बन जाएगी।''

''ओ० के०, बना दीजिए।'' रणजीत ने कहा।

''शहद के साथ लेंगे या शक्कर डालूं?'' सलमा ने चम्मच उंगलियों में घुमाते हुए पूछा।

''शहद केँ साथ, बग़ैर दूध की।''

सलमा ने आश्चर्य से उसे देखा और प्याले में शहद डालते हुए बोली-''कुछ भी तो फ़र्क नहीं, आपमें और उनमें। आदतें भी दोनों की ही एक-सी हैं।''

''हमशक्ल जो ठहरे...कौन-कौन-सी आदतें मिलती हैं हमारी?''

''वह भी तो शहद के साथ बग़ैर दूध की चाय पीते हैं, आपकी तरह ही मुस्कराते हैं...बात करने का लहजा भी वही है।''

''और...?''

''कितनी बातें गिनाऊं...उन्हें भी फ़ौजी ज़िंदगी पसंद है...वह भी इतने ही कट्टर पाकिस्तानी हैं, जितने कट्टर हिंदुस्तानी आप हैं...अपने वतन की खातिर जान-कुर्बान करना वे भी फ़क्र समझते हैं और आप भी...। उन्हें भी मार-धाड़ और लड़ाई पसंद है और आपको भी...हालांकि शक्ल-सूरत से आप दोनों कोमल दिल के, भोले-भाले फ़रिश्ते जैसे ही दिखाई देते हैं।''

सलमा ने चाय तैयार कर, प्याला रणजीत की ओर बढ़ा दिया। रणजीत ने तौलिये से चेहरा साफ़ किया और उसके हाथ से प्याला लेते हए बोला-''आपको क्या जंग पसंद नहीं है?''

''जंग...!'' इस शब्द को दोहराते हुए सलमा ने एक झुरझुरी-सी महसूस की। उफ़! जंग का नाम ही कितना भयानक है...कितनी सुहागिनें बेवा हो जाती हैं...कितनी मांओं की कोख उजड़ जाती हैं कितने मासूम बच्चे यतीम हो जाते हैं...कहते-कहते वह भावुक हो गई और फिर रणजीत से नज़रें मिलाते हुए बोली-''मगर आप तो जब किसी पाकिस्तानी सिपाही को मारते होंगे तो बड़े खुश होते होंगे। यह नहीं सोचते होंगे कि वह भी किसी मां का लाल होगा, किसी बहन का भाई और किसी सलमा का शौहर जो तनहा अपने घर में, उसकी इंतज़ारी में आंखें बिछाए बैठी होगी।''

उसने ये सब बातें इतने करुण-भरे स्वर में कही थीं कि रणजीत का भी जी भर आया। लेकिन उसने सलमा को चुप कराने के ध्येय से कहा-''तो क्या आप समझती हैं कि आपके शौहर जब किसी हिंदुस्तानी सिपाही को मारते होंगे, तो उन्हें इसी तरह की खुशी नहीं होती होगी।''

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