ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''है नहीं, थी...अब देखिएगा तो आप पहचान भी नहीं सकेंगे उन्हें।''
''मैं समझता हूं...औलाद का दुःख इंसान को ज़िंदा ही मार डालता है।''
पूनम काफ़ी का घूट भरती हुई एक आलमारी की ओर बढ़ी और वह एलबम उठा लाई, जिसमें उसके दो नौजवान भाइयों की तस्वीरें थीं। उन सुंदर नौजवानों की असमय मृत्य का विचार करके रणजीत के मुंह से अनायास ही 'आह' निकल पड़ी। उसने पलटकर देखा, पूनम की आंखों में भी आंसू छलछला आए थे, जिन्हें वह अपनी भीगी साड़ी के पल्लू से पोंछ रही थी।
इससे पहले कि वह सांत्वना के दो शब्द बोलता, एक गुर्राती आवाज़ सुनकर वह चौक पड़ा। काफ़ी का प्याला उसके हाथ में कांप गया। मुड़कर उसने दरवाज़े की तरफ देखा तो सामने ही एक दुर्बल-सा बूढ़ा आदमी नाइट-सूट पहने खड़ा था। उसकी आंखें अंदर को धंसी हुई थीं और गाल पिचके हुए थे। रणजीत ने पूनम के डैडी को पहचान लिया, जो कुछ देर तक रणजीत को घूरता रहा और फिर उससे पूछा-''कौन हो तुम?''
''कैप्टन रणजीत...मुझे छोड़ने आए हैं डैडी।'' पूनम बीच में ही बोल पड़ी।
''ओह! आई सी...।'' पूनम के डैडी ने एड़ियां बजाकर चटकी से फ़ौजी सैल्यूट किया और बोला-''तुम फ्रंट पर जाना चाहते हो कैप्टन?''
''यस सर...।'' रणजीत ने सादर उत्तर दिया।
''तो ठहरो...मेरा बनाया हआ एटम बम का फ़ार्मूला लेते जाओ...जो दुश्मन के छक्के छुड़ा देगा।''
यह कहकर वह मुड़कर अपने कमरे में चले गए तो पूनम ने रणजीत से कहा-''आप जल्दी से चले जाइए...कहीं डैडी आ गए तो अपना फ़ार्मूला समझाते-समझाते आपकी रात खराब कर देंगे।''
''लेकिन वह बुरा तो नहीं मानेंगे?''
''मैं उन्हें संभाल लंगी।''
रणजीत शायद अभी कुछ देर रुकना चाहता था, लेकिन पूनम की बात सुनकर उसने वहां रुकना उचित नहीं समझा और झट बाहर आकर मोटर साइकिल लेकर हवा हो गया।
रणजीत और पूनम की पहली मुलाकात का वर्णन करके रशीद जैसे ही रुका। सलमा उसकी बातों में इस तरह खो गई थी, मानो चित्रपट पर कोई दिलचस्प फ़िल्म देख रही हो। उसके चुप होते ही पूछ बैठी।
''कितनी हसीन थी यह मुलाकात।'' सलमा ने जैसे स्वप्नों की दुनियां से जागते हुए कहा।
''लाख हसीन हो उनकी मुलाकात...लेकिन हमारी पहली मुलाकात की बराबरी नहीं कर सकती।
''वह कैसे?''
''पानी फिर पानी है और आग फिर आग।''
यह कहकर रशीद ने एक ठहाका लगाया और बेड-स्विच आफ़ करके उसे आलिंगन में खींच लिया।
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