ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''अरे रहने दीजिए...अभी छावनी पहुंच जाऊंगा...अर्दली फ्री दवा लगा देगा।''
''अर्दली और मुझमें कोई अंतर नहीं लगता आपको?'' पूनम के मुंह से अनायास यह वाक्य निकल गया और फिर फौरन ही अपनी बात पर शरमा गई। उसको झेंपते देखकर रणजीत मुस्करा पड़ा और मोटर साइकिल उसके घर की ओर खींचता हुआ। बोला-''चलिए, अब आपसे घावों पर मरहम लगवाकर ही जाऊंगा।''
पूनम ने बाहर वाले दरवाजे में चाबी घुमाई और किवाड़ खोलकर अंदर प्रविष्ट हो गई। रणजीत अभी उसके संकेत की प्रतीक्षा ही कर रहा था कि वह बरामदे की बत्ती जलाती हुई बोली-''घर छोटा है जरा...।''
''लेकिन कितना संवरा हुआ है।'' रणजीत ने कहा और अंदर दाखिल होता हुआ बोला-''मेरा मेस का कमरा तो इससे भी छोटा है।''
पूनम उसे बैठाकर अंदर गई और शीघ्रता से मरहम की ट्यूब तथा रुई-पट्टी ले आई। उसने धीरे-धीरे, बड़ी कोमलता से घाव को पहले साफ किया, फिर ट्यूब से मरहम लगाकर पट्टी बांध दी।
रणजीत 'धन्यवाद' कहकर जाने के लिए उठा ही था कि वह झट बोली-''जरा रुकिये, मैं अभी आती हूं।'' यह कहकर वह तेज़ी से अंदर चली गई।
रणजीत ने सोचा, शायद वह अपनी भीगी साड़ी बदलने गई है। उसके जाने के बाद रणजीत ने ध्यानपूर्वक चारों ओर दृष्टि घुमाकर कमरे को देखा। साधारण फर्नीचर था...परंतु कमरा सुंदर ढंग से सजा हुआ था।
रणजीत कुर्सी से उठा और कार्निस की ओर बढ़ा, जहां एक संदर फ्रेम में जड़ी एक तस्वीर रखी थी। फ़ौजी वर्दी में एक जवान! सुडौल बदन, भरा हुआ चेहरा, बडी-बड़ी चमकदार आंखें...राजपूती स्टाइल की छल्लेदार मूछें और सीने पर सजी जंगी तमगों की। पंक्ति। उसने सोचा यह पूनम के डैडी की तस्वीर हो सकती है।
तभी अपने पीछे आहट सुनकर वह पलटा। पूनम लौट आई थी। वह साड़ी बदलने नहीं गई थी, बल्कि गरम-गरम काफ़ी के दो प्याले उसके हाथ में थे। एक प्याला रणजीत की ओर बढ़ाते हुए बोली-''लीजिए...काफ़ी पीजिए।''
''अरे, आपने यह कष्ट क्यों किया?''
''कष्ट कैसा! बारिस में भीगने के बाद तो काफ़ी पीना ज़रूरी हो जाता है।''
रणजीत ने काफ़ी का प्याला थाम लिया और पलटकर फिर कार्निस पर रखी उस तस्वीर को देखने लगा।
''यह मेरे डैडी हैं।'' पूनम ने उसके पास आते हुए कहा।
''तो मेरा अनुमान ठीक ही था...क्या पर्सनालिटी है।''
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