लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> वापसी

वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

363 पाठक हैं

सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''अब बारिश थम गई है।'' रणजीत ने आसमान की ओर देखते हुए कहा-''चलिए आपको घर तक छोड दूं।''

''जी नहीं...मैं चली जाऊंगी।''

उसके इस रूखे उत्तर से रणजीत का चेहरा उतर गया। पूनम ने अनुभव किया कि रणजीत बुरा मान गया है। उसे अपने रूखे व्यवहार पर कुछ आत्मग्लानि-सी अनुभव हुई। शिष्टता जताने के लिए वह कोई उचित शब्द सोच ही रही थी कि रणजीत ने 'गुड नाइट' कहा और लपक कर मोटर साइकिल स्टार्ट कर दी। तेज़ी से सड़क की ओर बढ़ा ही था कि पूनम ने उसे पुकार लिया-''सुनिए...।''

रणजीत ने एकाएक ब्रेक लगाया और गीली सड़क पर मोटर साइकिल फिसल गई।

पूनम के मुंह से चीख़ निकल पड़ी। उसने लपक कर कीचड़ में लथपथ, रणजीत को उठाना चाहा, लेकिन उसके वहां पहुंचने से पहले ही रणजीत घुटने सहलाता हुआ उठ खड़ा हुआ और बोला- ''घबराइए नहीं...अधिक चोट नहीं आई है।''

''आई एम सॉरी...मैं भी कितनी मूर्ख हूं...आपको अचानक पुकार बैठी। मैं इस तरह न पुकारती तो आप गिरते नहीं।'' पूनम ने कुछ संताप से कहा।

''कोई बात नहीं...'' रणजीत मुस्कराया-''ज़िंदगी में गिरना और उठना तो लगा ही रहता है। कहिए, क्यों पुकारा आपने?''

''अब क्या कहूं?''

''नहीं-नहीं, कहिए...ना।''

''मुझे मेरे घर तक पहुंचा ही दें...जाने बस कब मिले।'' पूनम ने कुछ झेंपते हुए कहा।

''चलिए...मैंने कब इन्कार किया है।'' वह मुस्करा दिया।

पूनम जल्दी से उछलकर उसके पीछे बैठ गई...लेकिन बैठ ही उसके मुंह से निकला-''हाय राम!''

''क्यों-क्या हुआ?''

पूनम ने उसके घुटनों से फटी पतलून से रिसते हुए लहू की ओर संकेत करके कहा-''आपके घुटने तो बुरी तरह छिल गए हैं...खून बह रहा है।''

''ओह...कोई बात नहीं।'' रणजीत ने लापरवाही से सिर झटकते हुए कहा और मोटर साइकिल स्टार्ट कर दी।

थोड़ी ही देर में मोटर साइकिल हवा से बातें करती हुई, गोल मार्केट पहुंच गई। पूनम ने अपने घर के सामने मोटर साइकिल रुकवा ली और उछल कर नीचे उतर गई...फिर मकान की ओर बढ़ती हुई बोली-''अंदर आ जाइए...आपके घाव पर मलहम लगाकर बैंडेज बांध दंगी।''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book