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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''बस स्टाप पर खड़ी थी कि बारिस ने आ घेरा। उससे बचने के लिए यहां आ गई।''

''आपकी घबराहट देखकर, मैंने तो सोचा आप मुझसे डर गईं।''

''नहीं, फ़ौजी आदमियों से मुझे डर नहीं लगता।''

''क्यों?''

''वे दुश्मनों के लिए जितने खतरनाक होते हैं, दोस्तों के लिए उतने ही मेहरबान।''

''ओह! लगता है, आपको फ़ौजियों के बारे में काफी अनुभव है।''

''मेरे डैडी, चाचा और दो भाई सभी फ़ौज में थे।''

''और अब...?''

''चाचा रिटायर होकर विदेश चले गये...दोनों भाई मारे गये...'' कहते-कहते वह थोड़ी रुकी तो रणजीत झट बोल उठा- ''और डैडी...?''

''ज़िंदा भी हैं और नहीं भी...बेटों के ग़म में पागल हो गए हैं।'' कहते हुए पूनम की पलकें भीग गईं।

''ओह, क्षमा कीजिए, मैंने आपका दिल दुखाया।'' रणजीत ने धीरे से कहा और फिर बात बदलते हुए पूछ बैठा-''आपका नाम जान सकता हूं?''

''पूनम।''

''मां-बाप ने आपकी सुन्दरता देखकर ही यह नाम रखा होगा।'' रणजीत ने मुस्कराकर कहा।

पूनम अपने सौंदर्य की खुली प्रशंसा पर थोड़ी झेंपी, फिर झट बात बदल कर बोली-''तूफान शांत हो चुका है, और बिजली भी आ गई है...।''

रणजीत उस सुंदर लड़की के सामीप्य में एक अनोखा आनंद अनुभव कर रहा था...इसलिए उसे कुछ देर तक और रोकने के विचार से बोला-''अभी बूंदें पूरी तौर से रुकी नहीं हैं...थोड़ी देर और ठहर जाइए, वर्ना घर पहुंचते-पहुंचते आप भीग जाएंगी...कहां रहती हैं आप?''

''गोल मार्केट...।''

''इतनी रात को कहां गई थीं...? क्या फ़िल्म देखने?''

''जी नहीं...।'' पूनम ने साड़ी का आंचल निचोड़ते हुए कहा-''मुझे फ़िल्में देखने का अधिक चाव नहीं।''

''तो फिर?''

''मैं टी० वी० में काम करती हूं...ड्यूटी पूरी करके लौट रही थी कि अचानक बारिश ने आ घेरा।''

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